भारतीय न्याय संहिता
भारतीय न्याय संहिताSyed Dabeer Hussain - RE

बलात्कार सिर्फ महिलाओं का... तो पुरुषों और जानवरों का क्या?

भारतीय दंड संहिता, 1860 की जगह पर लाए गए भारतीय न्याय संहिता, 2023 का कुछ वर्ग कर रहे है विरोध जाने क्यों ?
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राज एक्सप्रेस। संसद के शीतकालीन सत्र में कई विधेयक दोनों सदनों में पास किए गए जिसमे से एक था भारतीय न्याय संहिता (द्वितीय) विधेयक, 2023। यह विधेयक 163 साल पुराने भारतीय दंड संहिता (IPC) को बदलने के लिए लाया गया था जिसे, भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की सहमति 25 दिसंबर को प्राप्त हो गयी।

नए आपराधिक संहिता में जहाँ कुछ नए धाराओं और अपराधों को जोड़ा गया है वहीँ, कुछ ऐसी धाराओं को हटाया भी गया जिसे लेकर पुरुष अधिकार और पशु संरक्षण एक्टिविस्ट और एनजीओ ने अपनी नाराज़गी जताई है। इस नाराज़गी का कारण, भारतीय दंड संहिता का धारा 377 का हटाया जाना और बलात्कार जैसे बड़े अपराध को सिर्फ महिलाओं तक सिमित कर देना है। कुछ धाराओं को सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुसार भी बदला गया है जिस पर सबसे ज्यादा विवाद खड़ा हो गया है। चलिए, जानते है क्या है पूरा मामला।

क्या है धारा 377 और क्यों है यह इतना जरुरी :

भारतीय दंड संहिता के अध्याय 16 के अंतर्गत धारा 375 से लेकर 377 तक बलात्कार और उसकी सज़ाओं को लेकर बातें की गई है। धारा 377, अप्राकृतिक अपराध की श्रेणी में आने वाली ऐसी धारा है। धारा 377 में कहा गया है कि "जो कोई भी स्वेच्छा से किसी भी पुरुष, महिला या जानवर के साथ 'प्रकृति के आदेश के खिलाफ' शारीरिक संबंध बनाता है, उसे दंडित किया जाएगा, या किसी एक अवधि के लिए कारावास से, जिसे दस साल तक बढ़ाया जा सकता है।"

यह धारा, यौन अपराधों से पीड़ित पुरुषों एवं समलैंगिकों और वैवाहिक बलात्कार से पीड़ित महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए इस्तेमाल की जाती है। इस धारा की मदद से ही जानवरों के साथ यौन अपराध करने वाले अपराधियों को भी सजा दी जाती है। अब नए भारतीय न्याय संहिता में धारा 377 को शामिल नहीं किया गया है। इस धारा के अंतर्गत अपराधी को आर्थिक दण्ड के आलावा आजीवन कारावास तक की सजा हो सकती है। यह एक गैर-जमानती, संज्ञेय अपराध है और प्रथम श्रेणी के मेजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय है।

भारतीय न्याय संहिता से धारा 377 को मिटाया गया :

नए भारतीय न्याय संहिता में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों के लिए अलग अध्याय 5 बनाया गया है जिसमे धारा 63-72 तक महिलाओं और बच्चों से जुड़े यौन अपराधों और सजाओं का वर्णन किया गया है। इन धाराओं में कहीं भी न तो धारा 377 को लेकर दूसरी कोई धारा का वर्णन है न तो पुरुषों, जानवरों और समलैंगिकों को यौन अपराधों से बचाने के लिए कोई प्रावधान है। इसके बजाए नई संहिता में यह माना गया है कि एक पुरुष ही महिला का बलात्कार या स्टाकिंग कर सकता है ना की महिला। हालाँकि, आईपीसी में भी 'बलात्कार' एक लिंग आधारित प्रावधान है जहां अपराधी केवल एक पुरुष और पीड़ित एक महिला हो सकती है।

भारतीय न्याय संहिता, 2023 विधेयक को पिछले साल मानसून सेशन में सदन में लाया गया था जिसके बाद इसे 31 सदस्यों वाली संसदीय स्थायी समिति (Parliamentary Standing Committee) के पास समीक्षा के लिए भेजा गया। 11 सितंबर, मानसून सत्र में सरकार ने इस विधेयक को यह कहते हुए वापिस ले लिया था कि वह संसदीय स्थायी समिति की समीक्षा के बाद इसे वापस सदन में लाएगा।

संसदीय स्थायी समिति ने 15 नवंबर को विधेयक में बदलाव करने की सिफारिश की थी जिसमे से दो सिफारिशें बहुत अहम् थी। समिति ने गृह मंत्रालय से व्यभिचार (Adultery) को अपराध की श्रेणी में रखने और धारा 377 को बनाए रखने की सिफारिश की थी। बहरहाल, समिति की इन सिफारिशों को सरकार ने न मानते हुए शीतकालीन सत्र में भारतीय न्याय संहिता (द्वितीय) विधेयक, 2023 का नया मसौदा सदन के पटल पर रखा जिसमे पिछली बार की तरह व्यभिचार को अपराध की श्रेणी से बाहर किया और धारा 377 को मिटा दिया गया। सरकार ने इसका कारण सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए 2018 के दो निर्णयों को बताया था।

पहला, 27 सितंबर 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने व्यभिचार को अपराध श्रेणी से बाहर कर दिया था और दूसरा नवंबर में नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ केस में धारा 377 के कुछ हिस्सों को हटाकर समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से हटा दिया, जिन्हें एलजीबीटीक्यू (LGBTQ+) समुदाय के मौलिक अधिकारों के साथ संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता) और 15 (धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध) का उल्लंघन माना गया था। हालाँकि, नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ केस के निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने गे कपल के आपसी सहमति के साथ शारीरिक संबंध बनाए जाने को गैर-अपराधीकरण कर दिया था। इसके आलावा सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 बाकि बचे पहलुओं बिलकुल वैसा ही बनाए रखा था जैसा वह पहले था।

धारा 377 जैसी समान धारा को भारतीय न्याय संहिता में जोड़ने की माँग :

दोनों सदनों से पास होने के बाद नए आपराधिक संहिता का जानवरों के काम करने वाले एनजीओ, एक्टिविस्ट और अन्य संस्थाओं ने 377 जैसी अहम् धारा को भारतीय न्याय संहिता से मिटाए जाने का विरोध किया है। यहाँ तक कि, सदन के भीतर भाजपा सांसद पूनम महाजन भारतीय न्याय संहिता विधेयक पर बहस में आईपीसी की धारा 377 का मुद्दा उठाया था। उन्होंने कहा था

"बीएनएस में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है और यह हानिकारक हो सकता है क्योंकि पाशविकता और जानवरों पर हमलों के मामले बढ़ रहे हैं। उन्होंने कहा था कि अगर बीएनएस के तहत जानवरों के साथ दुर्व्यवहार करने वालों को दंडित करने का कोई प्रावधान नहीं है तो उनके खिलाफ मामला दर्ज कराना मुश्किल होगा।"

AIMIM प्रमुख और सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने पुरुषों और समलैंगिकों के बलात्कार का मुद्दा उठाते हुए कहा था कि "क्या बलात्कार सिर्फ महिलाओं का होता है...जानवरों, पुरषों और समलैंगिकों का नहीं होता।" इसके आलावा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर एनिमल राइट इन्फ्लुएंसर्स ने भी सरकार से धारा 377 को भारतीय न्याय संहिता में जोड़ने की मांग की है।

पुरुष और जानवरों के खिलाफ बढ़ रहे बलात्कार के मामलों को लेकर रिसर्च रिपोर्ट्स :

देश में कुछ ऐसी रिसर्च रिपोर्ट्स और सर्वेक्षण प्रकाशित की गयी जिसमे बताया गया है कि पुरुषों और जानवरों के खिलाफ हो रहे यौन अपराध साल दर साल बढ़ते जा रहे है। फिल्म निर्माता और बाल अधिकार एक्टिविस्ट इंसिया दारीवाला द्वारा किए गए सर्वेक्षण में 1500 पुरुषों का सर्वेक्षण किया गया था, जिनमें से 71% पुरुषों ने कहा कि उनके साथ दुर्व्यवहार किया गया था, 84% ने कहा कि उन्होंने दुर्व्यवहार के बारे में किसी को नहीं बताया था और इसका प्राथमिक कारण 55% शर्म थी, इसके बाद भ्रम 50.9%, भय 43% और अपराधबोध 28.7% है। 2012 निर्भया कांड के बाद बनी कानून समिति के अध्यक्ष न्यायाधीश जे.एस वर्मा ने भी अपनी रिपोर्ट में कहा था कि देश में लिंग तटस्थ कानून का होना जरुरी है ताकि न्याय सबको मिल सके।

फेडरेशन ऑफ इंडियन एनिमल प्रोटेक्शन ऑर्गनाइजेशन (FIAPO) ने 2021 में प्रकाशित अपनी रिपोर्ट में बताया था कि 2010-2020 के बीच, उन्होंने जानवरों के खिलाफ क्रूर हमले के लगभग 1,000 मामले दर्ज किए, जिनमें से 82 जानवरों के खिलाफ पुरुषों द्वारा किए गए यौन शोषण के मामले थे। साल 2022 में मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय ने पशुओं के प्रति क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 में 61 संशोधन करने की मांग की थी जिसके लिए उन्होंने विधेयक का मसौदा भी तैयार किया था। इन संशोधनों में से एक पाशविकता को अपराध की श्रेणी में रखना और बाकि सभी अपराधों में सजा एवं जुर्मानें की अवधि बढ़ाया जाना था। हालाँकि, यह विधेयक कभी संसद के पटल में आया ही नहीं।

एनजीओ वॉयस ऑफ स्ट्रे डॉग्स (VoSD) की अक्टूबर 2014 की रिपोर्ट के अनुसार, "देश में कुत्तों से बलात्कार की दर महिलाओं से बलात्कार की घटनाओं के समान ही है - प्रति 100,000 पर 20", जो काफी परेशान करने वाली बात है। ऐसे में पुरुषों और समलैंगिकों की सुरक्षा के लिए धारा 377 काम में आती थी वही जानवरों के साथ यौन अपराध करने वालों को सजा देने के लिए "पशुओं के प्रति क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 (THE PREVENTION OF CRUELTY TO ANIMALS ACT, 1960) का इस्तेमाल किया जाता है। इस अधिनियम में जानवरों से जुड़े सभी अपराधों और सजाओं का जीकर है लेकिन इसमें भी जानवरों के यौन अपराध और उसकी सजा का कोई जीकर नहीं है।

भारतीय न्याय संहिता, 2023 के बारे में और अधिक जानने के लिए नीचे अटैच्ड डॉक्यूमेंट को पढ़े :

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