रामेश्वरम में धनुषकोडी स्टेशन दोबारा बनाने की रेलवे की तैयारी
रामेश्वरम में धनुषकोडी स्टेशन दोबारा बनाने की रेलवे की तैयारीSocial Media

रामेश्वरम में धनुषकोडी स्टेशन दोबारा बनाने की रेलवे की तैयारी

रेल मंत्रालय तमिलनाडु में रामेश्वरम द्वीप पर धनुषकोडी में 58 साल पहले सुनामी की चपेट में आकर तबाह हुए रेलवे स्टेशन को फिर से बनाने की तैयारी शुरू कर दी है।

रामेश्वरम। रेल मंत्रालय तमिलनाडु में रामेश्वरम द्वीप पर धनुषकोडी में 58 साल पहले सुनामी की चपेट में आकर तबाह हुए रेलवे स्टेशन को फिर से बनाने की तैयारी शुरू कर दी है, लेकिन स्थानीय निवासियों को इस बात का बिल्कुल भी यकीन नहीं है कि इस धरती पर फिर कभी रेलगाड़ी आएगी।

धनुषकोडी में रहने वाले 75 वर्षीय पुरुषोत्तम को 23 दिसंबर 1964 की तारीख याद है,जब सुनामी की लहरों ने करीब 110 यात्रियों से भरी पूरी ट्रेन को लील लिया और पटरियों को ना जाने कहां बहा ले गयी। पत्थरों से बनी स्टेशन की मजबूत इमारत के खंडहर ही बचे रह गये जो आज भी गवाही दे रहे हैं कि यहीं वो रेलवे स्टेशन था, जहां से श्रीलंका के लिए फेरी सेवा लेने वाले यात्रियों को लेकर चेन्नई से बोट एक्सप्रेस आया करती थी। पुरुषोत्तम को वो भयावह दृश्य याद है कि वह कैसे लाशों के बीच पांव रखते हुए सुरक्षित निकल पाये।

करीब 58 वर्षों बाद दक्षिण रेलवे के मुख्यालय ने धनुषकोडी रेलवे स्टेशन और रामेश्वरम से धनुषकोडी तक करीब 15-16 किलोमीटर लंबी रेलवे लाइन को बिछाने की लगभग 760 करोड़ रुपए की लागत वाली योजना बना कर रेलवे बोर्ड की स्वीकृति के लिए भेजी है। एक समय धनुषकोडी से उत्तरी श्रीलंका के जाफना प्रायद्वीप के तलई मन्नार के लिए फेरी सेवाएं चला करतीं थीं, जो धनुषकोडी से महज 18 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। धनुषकोडी से हिन्द महासागर में पाक जल डमरू मध्य पार करके तलई मन्नार के बीच समुद्री मार्ग रामसेतु के अवशेषों के साथ ही है और फेरी से यात्रा में रामसेतु के अवशेष देखे जा सकते हैं।

पुरुषोत्तम और उसके जैसे 300 परिवार रेलवे की उस जमीन पर काबिज हैं जहां 1964 के पहले धनुषकोडी स्टेशन स्थित था और वहां नये स्टेशन का विकास किया जाना है। दक्षिण रेलवे के मदुरै मंडल के अभियंता हृदयेश कुमार के मुताबिक नये धनुषकोडी यार्ड के सीमांकन का कार्य पूरा कर लिया गया है जो लाइट हाउस के समीप है।

अधिकारियों के अनुसार 40 साल से अतिक्रमण करके रहने वाले ये लोग बिना बिजली और बुनियादी सुविधाओं के बावजूद यहां बसे हुए हैं। 62 वर्षीय काली अम्मा से जब पूछा गया कि यहां नया स्टेशन बनेगा तो कहां जाओगी, काली अम्मा ने मुस्कराते हुए जवाब दिया, ''यहां 40 साल से बिजली नहीं आयी तो रेलवे लाइन कैसे आ पाएगी।" काली अम्मा पुराने स्टेशन के खंडहरों के सामने शंख सीपियों आदि की एक दुकान चलाती है और उसके मंदिर में एक पानी की टंकी में 'तैरता हुआ राम का पत्थर' सैलानियों के आकर्षण का केन्द्र है। पुरुषोत्तम को भी यकीन नहीं है कि यहां दोबारा रेल लाइन आएगी।

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