कोरोना से खाद्य आपूर्ति संकट प्रबल

कटाई-तुड़ाई में देरी, वक्त पर न बिकने या स्टोरिंग अभाव के चलते खुले में पड़े रहने की स्थिति में अनाज और फलों पर मौसम की मार से सड़ने का खतरा भी मंडरा रहा है। जानें विस्तार से...
कोरोना लॉक डाउन से मौसमी फलों की फसल पर मंडरा रहा खतरा?
कोरोना लॉक डाउन से मौसमी फलों की फसल पर मंडरा रहा खतरा?Neha Shrivastav - RE

हाइलाइट्स

  • लॉकडाउन से बिगड़ी सप्लाई चेन

  • अनाज-फलों पर गहरा रहा संकट

  • शीतकालीन-ग्रीष्मकालीन फसल प्रभावित

  • दुग्ध निर्मित खाद्य पदार्थों की सप्लाई पर असर

राज एक्सप्रेस। दुनिया में आसन्न नोवल कोरोना वायरस डिजीज (COVID 19) के कारण भारत में एहतियातन लागू लॉकडाउन (Lockdown) से खाद्य आपूर्ति श्रृंखला डगमगा रही है। ट्रकों के पहिये थमने, पलायन से उपजे मजदूरी संकट में सबसे ज्यादा खतरा आवश्यक जरूरत की चीजों और जल्द खराब होने वाले दुग्ध, फल, सब्जियों जैसे खाद्य पदार्थों पर मंडरा रहा है।

लॉकडाउन में मजदूरों के पलायन और ट्रकों के पहिये थमने से खाद्यान्न आपूर्ति प्रभावित हो रही है। (सांकेतिक चित्र)
लॉकडाउन में मजदूरों के पलायन और ट्रकों के पहिये थमने से खाद्यान्न आपूर्ति प्रभावित हो रही है। (सांकेतिक चित्र)Social Media

दुग्ध कारोबार पर संकट :

दुग्ध कारोबार के आंकड़ों के मान से दीर्घकालीन लॉकडाउन की स्थिति में ग्रामीण भारत में छोटी डेयरी संचालक और इनकी आपूर्ति पर निर्भर परिवार भी प्रभावित होंगे। मौजूदा स्थिति में भी इस वर्ग का बड़ा प्रतिशत कोरोना वायरस संक्रमण से उपजी तालाबंदी का शिकार हो रहा है। हालांकि दुग्ध आपूर्ति को भारत में नरेंद्र मोदी सरकार ने आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति सूची में वरीयता प्रदान की है।

दुग्ध व्यवसाय से जुड़े लोगों का कहना है कि डेयरी में सिर्फ तरल दुग्ध का परिवहन हो रहा है जबकि दूध से दही, मक्खन, पनीर जैसे अन्य खाद्य पदार्थ बनाने की प्रोसेस थमने से दुग्ध विक्रय में अब प्रति लीटर मात्र 20 रुपये की ही कमाई हो पा रही है। जबकि देशव्यापी मंदी के पहले तक मुनाफा ज्यादा होता था।

संकट में अंगूर :

महाराष्ट्र में अंगूर की पैदावार करने वाले इस बात से परेशान हैं कि पर्याप्त संरक्षण के अभाव में जल्द खराब होने वाले अंगूर से उनको आर्थिक नुकसान होगा। जिन लोगों ने अंगूर उगाने के लिए लोन लिया है उनको सरकार से फिलहाल मदद की दरकार है। एक किसान के मुताबिक साल 2020 में कोरोना को रोकने के लिए लागू तालाबंदी वर्ष 2016 की नोटबंदी से भी बदतर है।

नोटबंदी के दिन याद करते हुए किसान ने बताया कि नोटबंदी के दौर में नकदी का संकट गहराने से फार्म पर कीमतें मिलने में परेशानी पैदा हुई थी। इससे उद्यानिकी से जुड़े वर्ग को पैदावार के भुगतान में देरी का सामना करना पड़ा। अब कोरोना के कारण लागू तालाबंदी से मजदूरों का संकट पैदा हो गया है।

अधिकांश मजदूरों ने अपने गृह ग्राम को पलायन कर लिया है या फिर घरों से निकलना बंद कर दिया है। थोक बाजारों में खरीदार नहीं हैं, क्योंकि व्यापारियों ने किसानों के फोन कॉल को रिसीव करना बंद कर दिया है। महाराष्ट्र में नासिक के प्रसिद्ध प्रीमियम अंगूर से अटे पड़े अधिकांश खेतों से अंगूर निर्यात करने कंटेनर जहाज उपलब्ध नहीं हैं। किसानों का दर्द यह भी है कि; लॉकडाउन के कारण बाजारों में रसायन न मिलने से अंगूर को सुखाकर किशमिश बनाना भी संभव नहीं हो पा रहा।

अमरूद :

महाराष्ट्र में औरंगाबाद के समीपवर्ती इलाकों में लॉकडाउन का असर अमरूद की खेती पर पड़ा है। अमरूद उगाने वाले माधव सपकाल के मुताबिक इस बार परिवहन के साधन उपलब्ध न होने से दिल्ली के थोक बाजार तक माल नहीं जा पाया। इस कारण 20 क्विंटल से अधिक अमरूद फेंकने के अलावा कोई और चारा नहीं था।

“जल्द ही 20 क्विंटल अमरूद की खेप तैयार हो जाएगी। यदि लॉकडाउन लंबा खिंचा तो यह डिलेवरी भी डंप करने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं रहेगा। इस कारण कुल 2 लाख रुपये से अधिक की चपत लगने की आशंका है।”

माधव सपकाल, अमरूद उत्पादक, औरंगाबाद

सेब, केला, संतरा, आम :

लॉकडाउन की वजह से बारहमासी फल केला समेत मौसमी फलों खरबूज, तरबूज, लीची, संतरा और फलों के राजा आम की बाजार में आवक पर भी संकट के बादल घिर आए हैं। बाजार आपूर्ति चेन गड़बड़ाने से लोगों को इस साल खरबूज, तरबूज और संतरा जैसे ग्रीष्मकालीन फलों के स्वाद के लिए तरसना पड़ सकता है।

आम को संरक्षित करने और उपोत्पाद बनाने के कई तरीके हैं लेकिन खरबूज, तरबूज, संतरा जैसे फलों को सुरक्षित रखने और इनसे उपोत्पाद बनाने के सीमित उपाय होने के कारण इन फलों की पैदावार पर निर्भर छोटे-बड़े किसानों को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ेगा। संतरा की पैदावार करने वाले कृषकों के मुताबिक मदर डेयरी समूह संतरे की खरीद तो कर रहा है लेकिन किसानों पर ही संतरा कंपनी के ठिकानों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी है। जो कि मौजूदा स्थिति में बहुत दुश्कर काम साबित हो रहा है।

भारत की आत्मा :

पिछले महीने 24 मार्च से 21 दिनों के लिए लागू देशव्यापी बंद का असर प्रत्यक्ष रूप से उत्पादकों की जेब से लेकर इस वर्ग पर आश्रित आमजन के उदर पर पड़ा है। नोवल कोरोना वायरस डिजीज संक्रमण ने देश के अर्थतंत्र से लेकर लोगों की आत्मा तक को हिला कर रख दिया है। ऐसे में इंस्टेंट फूड के आदी हो चले लोगों को भी अब समझ में आ रहा है कि क्यों राष्ट्रपिता महात्मा गांधी कहा करते थे कि भारत की आत्मा गांवों में निवास करती है।गांवों की आत्मा कहे जाने वाले किसानों को फिलहाल कोरोना त्रासदी के कारण अपना भविष्य अंधकारमय नजर आ रहा है।

टूट गई है माला :

उगाने से लेकर पैदा हुए अनाज/फल को मार्केट तक पहुंचाने में बड़े ट्रक और छोटी मोटर गाड़ियों तक का अहम रोल है। देशव्यापी बंद के कारण श्रृंखला बाधित होने से खेत-मार्केट का संपर्क बाधित हुआ है। परिवहन की माला टूटने से किसान और व्यापारी वर्ग जैसे मोती बिखर गए हैं इससे अर्थतंत्र पर तगड़ी चोट पहुंची है।

भले ही केंद्र सरकार ने फूड आइटम्स को देश भर के होलसेल मार्केट तक पहुंचाने के लिए परिवहन की अनुमति दी है, लेकिन खाद्य आपूर्ति श्रृंखला की हकीकत कुछ और है। थोक बाजारों में अंर्त एवं अंतरराज्यीय परिवहन साधनों और प्रवासी मजदूरों की कमी से बड़ी मंडियों तक रसद पहुंचाना मुश्किल हो रहा है। इससे थोक बाजार में आपूर्ति कम हो रही है जिससे खुदरा बाजार में मांग के अनुसार माल नहीं पहुंच पा रहा।

शीतकालीन फसल पर संकट :

गेहूं, काबुली चना, सरसों जैसी शीतकालीन फसल लेने वाले किसानों के सामने अप्रैल माह में तैयार खड़ी फसल की कटाई का संकट मंडरा रहा है। समस्या वही है कटाई के लिए मजदूरों, हार्वेस्टिंग मशीन का टोटा। सख्त तालाबंदी और जीवन का संकट गहराने के कारण किसानों को अपने दूर-दराज स्थित खेतों तक पहुंचने में तक परेशानी हो रही है।

“आम तौर पर मध्य प्रदेश के किसान पंजाब के हारवेस्टर बुलाकर फसल कटवा लेते थे, लेकिन इस बार पंजाब में कोरोना संक्रमण के कारण एमपी में कटाई का संकट पैदा हो गया है। मजदूरों के न मिलने से भी हाथ से फसल कटाई संभव नजर नहीं आ रही।”

ऋषिकेश मिश्रा, प्रगतिशील किसान, ग्राम- आमा हिनौता, जबलपुर, (मध्य प्रदेश)

समर्थन मूल्य पर खरीद? :

TotalLockdown से सवाल उठना लाजिमी है कि क्या अनाज मंडियों में समर्थन मूल्य पर सरकारी खरीद सामान्य रूप से चलेगी? क्योंकि कटाई के चरम वक्त पर किसी भी तरह की गड़बड़ी छोटे किसानों की कमर तोड़ कर रख सकती है। ऐसे में किसानों को कर्ज चुकाने के लिए अतिरिक्त सरकारी सहूलियत और वक्त की दरकार रहेगी। आमतौर पर कर्ज चुकाने और अगली फसल की तैयारी के लिए काटी गई उपज बेचकर ही छोटे कृषकों का जीवन चक्र चलता है।

नुकसान सर्वे? :

हरियाणा में बीते महीने मार्च में ओलावृष्टि के कारण तबाह गेहूँ फसल नुकसान का आंकलन शुरू हुआ ही था कि, कोरोना महामारी की समस्या सामने आ खड़ी हुई। यहां करनाल में ओलावृष्टि के कारण कई किसानों को अपनी गेहूँ की फसल से हाथ धोना पड़ा था।

अब तालाबंदी के कारण नुकसान सर्वे कार्य अटक गया है जिससे किसानों को चिंता सता रही है कि मौसम की मार से प्रभावित हुई फसल का मुआवजा उन्हें मिल भी पाएगा या नहीं? यदि मिलेगा भी तो कितना? कुल लॉकडाउन कितने दिन चलेगा? आदि-आदि।

इन सवालों के बारे में भी स्थिति साफ न होने से किसान असमंजस में हैं कि मुआवजा पाने नुकसान सर्वे कार्य के लिए फसल को खेत में “जैसी है” की स्थिति में ही छोड़ें या फिर “ऊंट के मुंह में जीरा” वाली तर्ज पर जितना मिल जाए की उम्मीद के साथ बची-खुची फसल को कटवाएं।

“बीमा दावों के लिए नुकसान का आंकलन लॉकडाउन की घोषणा से अटक गया है। कुछ सप्ताह में गेहूं की फसल न काटी तो बची खुची फसल भी स्वाहा हो जाएगी। साथ ही अगर फसल काट ली तो आंकलन करने के लिए कुछ भी नहीं रहेगा।"

जसकिंदर सिंह, पीड़ित किसान, करनाल, हरियाणा

संकट को समझें :

देश भर में किसान फसल कटाई के वक्त आसन्न संकट से चिंतित हैं। आम तौर पर शीतकालीन फसल की कटाई के लिए अप्रैल माह अहम होता है। कृषि मंत्रालय के अनुमान के अनुसार इस महीने शुरू होने वाली कटाई प्रक्रिया में तकरीबन 326 मिलियन टन खाद्यान्न और तिलहन की कटाई की संभावना है।

सड़ने का खतरा :

कई राज्यों में तालाबंदी के दौरान अनाज, फल आदि को गोदामों तक लाने पर प्रतिबंध लगाया गया है। ऐसे में कटाई-तुड़ाई में देरी, वक्त पर न बिकने या स्टोरिंग अभाव के चलते खुले में पड़े रहने की स्थिति में अनाज और फलों पर मौसम की मार से सड़ने का खतरा भी मंडरा रहा है।

चौतरफा मार :

इसके अलावा, महामारी कोरोना त्रासदी से उपजे मौजूदा परिदृश्य में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सरकारी खरीद में देरी होने की आशंका जताई जा रही है। किसानों की मानें तो थोक अनाज मंडियों में फसल बेचने के इच्छुक कृषकों को खरीदारों की कमी का सामना करना पड़ेगा। जो खरीदार समर्थ होंगे वे भी उपज को छांटने, ग्रेड करने और लोड करने वाले श्रमिकों को खोजने में संघर्षरत् होंगे।

ग्रीष्मकालीन फसल पर संकट :

शीतकालीन फसल की कटाई और खरीद में देरी होने से किसानों पर आर्थिक संकट गहरा सकता है। इससे किसानों को ग्रीष्मकालीन फसल की तैयारी में भी परेशानी होगी। मार्केट में इस समय तरलता की गंभीर रूप से कमी है। लगभग सभी, थोक व्यापारियों से लेकर खुदरा विक्रेता तक नकदी सहेजने की जुगत में हैं।

इसलिए न केवल कमोडिटी की कीमतों बल्कि दालों और तिलहनों पर भी इसका प्रतिकूल असर पड़ेगा। महाराष्ट्र में काबुली चना 25 रुपये प्रति किलोग्राम जबकि राजस्थान में किसान सरसों को 34 रुपया प्रति किलोग्राम जैसे औने-पौने दाम पर तक बेचने तैयार हैं। आपको ज्ञात हो यह दाम सरकार नियत घोषित समर्थन मूल्य से काफी कम हैं।

विरोधाभासी स्थिति :

हालांकि देशव्यापी तालाबंदी की घोषणा के कुछ दिनों बाद केंद्र सरकार ने थोक फसल बाजारों को छूट प्रदान कर सभी एजेंसियों को किसानों से अनाज खरीदने की अनुमति दी। लेकिन मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में अनाज, दालों और तिलहन के प्रमुख बाजारों में एहतियातन कामकाज बंद रहा। एग्रीकल्चर मार्केटिंग के बारे में अंतिम निर्णय राज्य सरकारों के फैसले पर निर्भर है क्योंकि केंद्र सिर्फ सलाह जारी कर सकता है।

लॉकडाउन का उपचार :

मौजूदा परिदृश्य में 14 अप्रैल तक लागू तालाबंदी को आगे बढ़ाए जाने की स्थिति में खाद्यान्न आपूर्ति बड़े तौर पर प्रभावित होगी। ऐसे में अब तक बाजार में उपलब्ध अनाज और दैनिक जरूरतों की आवश्यक वस्तुओं, फलों का स्टॉक कम पड़ सकता है।

हालांकि इस बारे में एक उपाय यह भी है कि खेत स्तर पर विकेन्द्रीकृत खरीद को अनुमति देने और प्रोत्साहित करने से भी खाद्यान्न आपूर्ति चेन न केवल बरकरार रह सकती है बल्कि बाजार में आवश्यक वस्तुओं की कमी के संकट को भी टाला जा सकता है। साथ ही इस तरीके से किसान वर्ग को भी अवश्यंभावी नुकसान से बचाया जा सकता है।

तेलंगाना मॉडल :

तेलंगाना ने अभिनव योजना की घोषणा की है। इसमें धान और मक्का फसल की ग्रामीण स्तर पर खरीद केंद्रों के माध्यम से समर्थन मूल्य पर खरीद की जाएगी। हालांकि नई प्रणाली कितनी सुगमता से कार्य करती है इसका परीक्षण फिलहाल बाकी है।

खाद्य आपूर्ति श्रृंखला में निरंतर व्यवधान अंततः उपभोक्ता हित को प्रभावित करेगा। कीमतों के व्यापक रूप से उतार-चढ़ाव करने पर किसान और उपभोक्ता दोनों को नुकसान होगा। लंबे समय तक तालाबंदी से किसानों को शीतकालीन फसल जबकि दैनिक मजदूरी पर निर्भर भूमिहीनों को नुकसान लगभग तय नजर आ रहा है।

यदि कीमतों में व्यापक रूप से क्षेत्रों में भिन्नता देखने में आती है और खाद्य आपूर्ति श्रृंखला में निरंतर व्यवधान पैदा होता है तो यह अंततः उपभोक्ता हित को प्रभावित करेगा। फिलहाल जल्द खराब होने वाले दुग्ध, फल, साग-सब्जियों जैसे खाद्य पदार्थों को सड़ने से बचाकर जरूरतमंद तक पहुंचाना केंद्र और राज्य सरकार के समक्ष कोरोना के बाद दूसरी बड़ी चुनौती होगी।

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