तात्या टोपे बलिदान दिवस : भारत का वह महान क्रांतिकारी, जिसकी मृत्यु आज भी बनी हुई है रहस्य

आधिकारिक दस्तावेजों के अनुसार 18 अप्रैल 1859 को अंग्रेजों ने तात्या टोपे को फांसी की सजा दी थी। हालांकि उनकी मृत्यु को लेकर कई तरह की धारणाएं भी हैं। उनकी मृत्यु आज भी एक रहस्य बनी हुई है।
तात्या टोपे बलिदान दिवस
तात्या टोपे बलिदान दिवसSyed Dabeer Hussain - RE

राज एक्सप्रेस। तात्या टोपे देश के प्रमुख और महान क्रांतिकारियों में से एक हैं । उन्होंने 1857 की क्रांति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। तात्या टोपे देश के उन महान क्रांतिकारियों में से एक हैं, जिन्होंने अंग्रेजी शासन के खिलाफ सबसे पहले विद्रोह शुरू किया था। उन्होंने अंग्रेजी शासन के खिलाफ कई महत्वपूर्ण लड़ाई लड़ी। खासतौर पर साल 1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम में उन्होंने झांसी की रानी के साथ मिलकर अंग्रेजों को धुल चटाने का काम किया था। आज देश के महान क्रांतिकारी रहे तात्या टोपे का बलिदान दिवस है। 18 अप्रैल 1859 को अंग्रेजों ने तात्या टोपे को फांसी की सजा दी थी। हालांकि उनकी मृत्यु को लेकर कई तरह की धारणाएं भी हैं। उनकी मृत्यु आज भी एक रहस्य बनी हुई है।

फांसी दी गई थी :

आधिकारिक दस्तावेजों के अनुसार अंग्रेज सरकार ने 7 अप्रैल 1859 को पाड़ौन के जंगलों से तात्या टोपे को गिरफ्तार किया गया था। इसके बाद उनके खिलाफ मुकदमा चलाया गया था। इस दौरान तात्या टोपे को फांसी की सजा सुनाई गई थी। उन्हें तीन दिनों तक शिवपुरी के किले में बंद रखा गया। 18 अप्रैल 1959 को शाम पांच बजे हजारों लोगों की उपस्थिति में तात्या टोपे को फांसी दे दी गई।

किसी और को दे दी फांसी :

कहा जाता है कि नरवर के राजा मानसिंह ने ही अंग्रेजों को तात्या टोपे के बारे में सुचना दी थी, जिसके आधार पर अंग्रेजों ने तात्या टोपे को गिरफ्तार किया था। हालांकि कहा जाता है कि तात्या टोपे को बचाने के लिए ही मानसिंह ने तात्या टोपे की जगह नारायण भागवत को गिरफ्तार करवा दिया था। अंग्रेजों ने फांसी की सजा के बाद जब बयान पर किए गए हस्ताक्षरों को मिलाया तो पता चला कि वह हस्ताक्षर तात्या टोपे के नहीं थे।

अंग्रेजों ने बोला झूठ :

दरअसल अंग्रेजों को जल्द ही इस बात का अहसास हो गया था कि उन्होंने जिस व्यक्ति को फांसी पर चढ़ाया वह तात्या टोपे नहीं हैं। हालांकि उन्होंने तात्या टोपे के जिंदा होने की बात इसलिए कभी सामने नहीं आने दी क्योंकि उन्हें डर था कि इससे विद्रोह भड़क सकता है। साल 1862 में जब नाना साहेब के वारिस राव साहब पेशवा पर मुकदमा चला तो अंग्रेजों ने उनसे पूछा था कि तात्या कहां है? इससे पता चलता है कि अंग्रेज जानते थे कि तात्या जिंदा है।

कैसे हुई थी मृत्यु?

तात्या टोपे की मृत्यु कैसे हुई थी इसको लेकर अलग-अलग मत है। तात्या टोपे के वंशज पराग टोपे का मानना है कि तात्या टोपे की मृत्यु युद्ध के दौरान हुई थी। वह 1 जनवरी 1859 को युद्ध में लड़ते हुए मारे गए थे। वहीं एक मत यह भी है कि साल 1909 में तात्या ने गुजरात में आखिरी सांस ली थी।

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