Ram Mandir Pran Pratistha
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Ram Mandir Pran Pratishtha Ayodhya :भक्तों की कहानी, जिन्होंने मंदिर प्रवेश निषेध होने से शरीर पर गुदवाया राम

Ayodhya Ramlala Mandir Pran Pratistha : रामनामी जनजाति अपनी भक्ति-भावना और प्रभु श्री राम के प्रति अपनी अटूट श्रद्धा को लेकर चर्चा का विषय बनी हुई है।

हाइलाइट्स

  • रामनामी जनजाति के लोगों ने राम भक्ति में गुदवाए पूरे शरीर पर जय श्री राम।

  • जनजाति के द्वारा दिसंबर-जनवरी में होता है सामूहिक राम भजन आयोजन।

  • भक्ति आंदोलन से हुई थी इसकी शुरुआत।

  • अब युवा पीढ़ी नहीं गुदवाती टैटू।

Chhattisgarh Ramnami Tribal : राज एक्सप्रेस। भगवान राम की जन्मभूमि अयोध्या में प्रभु श्री राम के मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा आगामी 22 जनवरी को होगी। राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा को लेकर देशवासियों में काफी उत्साह है। 500 साल के इन्तजार के बाद भगवान राम अपने जन्मस्थल पर विराजमान होने जा रहे हैं । ऐसे में लोगों की भक्ति राम के प्रति अटूट विश्वास की अनोखी कहानियां सामने आ रहीं है। इसी कड़ी में छत्तीसगढ़ की एक आदिवासी जनजाति प्रभु श्री राम के प्रति अटूट श्रद्धा को लेकर चर्चा का विषय बनी हुई है।

दरअसल, छत्तीसगढ़ राज्य में एक ऐसी जनजाति निवास करती है, जिसने अपने पूरे शरीर पर भगवान राम का नाम गुदवा रखा है। हाथ की हथेली, माथा, पैर के तलवे यहाँ तक कि, शरीर का सबसे नाजुक माना जाने वाला हिस्सा कान पर भी राम नाम लिखवाया है। इस जनजाति ने न सिर्फ मन बल्कि शरीर, आत्मा और पूरा जीवन केवल भगवान राम को समर्पित कर दिया है। इस जनजाति की सबसे ख़ास बात यह है कि, इसे भगवान की भक्ति करने के लिए न मंदिर चाहिए और न ही मूर्ती। वह केवल भगवान को स्मरण करते है और उनका जाप करते है। उनके अनुसार भगवान तो हर कण, हर मनुष्य, जीव-जंतु में है तो मूर्ति की क्या जरूरत। इस प्रकार की भक्ति को मध्यकाल के दौर में निर्गुण भक्ति कहा जाता था। आइये अब जानते है वर्तमान दौर के निर्गुण भक्ति करने वाली जनजाति के बारे में ...।

इस जनजाति को रामनामी आदिवासी के नाम से जाना जाता है। इस जनजाति के लोग भारत के विभिन्न राज्यों में बसे हुए है। जिसमें महाराष्ट्र, ओडिशा और छत्तीसगढ़ शामिल है। इस जनजाति के लोगों ने अपने पूरे शरीर पर राम नाम लिखवाया है इसके साथ ही यह जनजाति केवल राम नाम लिखे कपड़े पहनते है और सिर पर मोरपंख से बना हुआ मुकुट पहनते है।

रामनामी जनजाति का इतिहास

रामनामी जनजाति का इतिहास भक्ति आन्दोलन से जुड़ा है। भक्ति आन्दोलन की शुरुआत दक्षिण भारत से शुरु हुई थी जिसके बाद यह धीरे-धीरे पूरे देश में फ़ैल गया था। इसी के फल स्वरुप देश में निर्गुण भक्ति करने वाली जनजाति उभरी। दरअसल, भक्ति आंदोलन के दौरान सभी नीच जाति और जनजाति के लोगों को भगवान की पूजा और मंदिरों में प्रवेश से मना कर दिया था। इसके साथ ही उन्हें सार्वजनिक कुए से पानी लेने तथा मंदिर के बाहर भी खड़े रहने से मनाही थी। इसके बाद जनजाति के लोगों की अपनी भक्ति और आस्था के लिए लड़ाई शुरू हुई। इस दौरान जनजातियों के लोगों ने अपने मन में ही भगवान को याद करना शुरू किया और अपने पूरे शरीर पर राम नाम गुदवा (टैटू) करा लिया। जिसके बाद अपने जनजाति को ही रामनामी जनजाति नाम दे दिया। रामनामी जनजाति में कई लोग है जो अपने सिर या माथे पर राम नाम गुदवाते है ऐसे लोगों को सर्वांग रामनामी कहते है। वहीं जो अपने पूरे शरीर पर प्रभु श्री राम का नाम गुदवाते है उन्हें नखशिख रामनामी कहा जाता है। इसके अलावा कुछ लोग माथे पर एक जगह राम-राम लिखवाते हैं और उन्हें शिरोमणि कहा जाता है।

शरीर पर राम नाम लिखवाने की शुरुआत

इस जनजाति के लोगों ने 1890 के दशक में शरीर पर राम का नाम लिखवाना शुरू किया था। रामनामी जनजाति की स्थापना की श्रेय परशुराम को जाता है। रामनामी जनजाति के लोग भगवान श्रीराम में अटूट श्रद्धा रखते हैं। माना जाता है कि भारत में रामनामी जनजाति के करीब 1 लाख लोग रहते हैं। इसके अलावा यह भी माना जाता कि, मुगलों के शासन काल के दौरान हिन्दुओं को धर्म से अलग करने के लिये मंदिर और भगवान से दूर कर दिया गया था। इस दौरान में एक जनजाति ने अपने पूरे शरीर पर राम नाम का गुदना करवा लिया था और मुगलों के मंसूबे पर पानी फेरा था। रामनामी समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष मेहत्तरलाल टंडन ने कहा “मंदिरों पर सवर्णों ने धोखे से कब्जा कर लिया और हमें राम से दूर करने की कोशिश की गई हमने मंदिरों में जाना छोड़ दिया, हमने मूर्तियों को छोड़ दिया. ये मंदिर और ये मूर्तियाँ इन पंडितों को ही मुबारक।”

अब युवा पीढ़ी नहीं गुदवाती टैटू :

इस संप्रदाय के अनुयायी शराब या धूम्रपान नहीं करते हैं, हर दिन राम का नाम जपते हैं, अपने शरीर पर "राम" शब्द गुदवाते हैं। इसके साथ ही राम शब्द छपा हुआ शॉल पहनते हैं और मोर पंख से बनी टोपी पहनते हैं। पूरे शरीर पर राम नाम का टैटू बनवाने वालों को "पूर्णनाक्षिक" के नाम से जाना जाता है और वे अधिकतर सत्तर के दशक के होते हैं। रामनामियों की युवा पीढ़ी अब टैटू नहीं गुदवाती है, उन्हें डर है कि टैटू के कारण उनके साथ भेदभाव किया जा सकता है और उन्हें काम से वंचित किया जा सकता है।

रामनामी जनजाति के लोगों द्वारा भजन मेला आयोजन :

रामनामी हर साल फसल के मौसम के अंत में दिसंबर-जनवरी में रायपुर जिले के सरसीवा गांव में तीन दिवसीय भजन मेले के लिए इकट्ठा होते हैं, जहां वे एक जयोस्तंभ (एक सफेद स्तंभ जिस पर राम का नाम खुदा होता है) खड़ा करते हैं और राम नाम का जप करते हैं।

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