महिलाओं पर थोपी जाने वाली तर्कहीन परंपराएं
महिलाओं पर थोपी जाने वाली तर्कहीन परंपराएंSyed Dabeer Hussain - RE

Women Health : जानें दुनिया में महावारी (Menstruation) को लेकर महिलाओं पर थोपी जाने वाली तर्कहीन परंपराएं

Women Health: आइए आपको बताते है दुनिया की कुछ ऐसी परंपराओं के बारे में जिसकी आड़ में कट्टरवादी लोगों द्वारा महिलाओं की सामान्य अवस्था को कैसे अस्वच्छ और अछूत बनाया गया।

राज एक्सप्रेस। 9 मई 2023, देश की वित्तीय राजधानी कही जाने वाली मुंबई (Mumbai) के उल्हासनगर (Ulhasnagar) इलाके में एक दिल दहला देने वाली घटना होती है। एक 12 साल की छोटी बच्ची की उसके सगे भाई द्वारा हत्या कर दी जाती है। अपराधी भाई द्वारा अपनी बहन की भयानक हत्या का कारण बताया गया तो सभी दंग रह गए। पुलिस ने बताया कि अपराधी भाई ने अपनी बहन की हत्या इसलिए की क्योंकि उसे अपनी बहन के कपड़ो में महावारी के दाग देखकर यह लगा की उसकी बहन शारीरिक संबध बनाकर आई है। यह घटना सुनने में जितनी अजीब लगती है उससे कई गुना ज्यादा भयावह है, क्योंकि इस घटना ने यह बात साबित कर दी कि, महावारी को लेकर भारतीय समाज अब तक कितना अशिक्षित और रूढ़िवादी है।

एक बच्ची की जान सिर्फ इसलिए चली गई क्योंकि उसके घर के सदस्यों को रजोदर्शन (Menarche) या महावारी (Menstruation) का ज्ञान ही नहीं था। यह रूढ़िवादी सोच भारत तक ही सीमित नहीं है, अपितु बाहर के देशों में भी देखी जाती है। इस सोच का दुनिया में इस प्रकार असर हुआ है कि इसने हर धर्म, समुदाय, संस्कृति और देश में महावारी को लेकर तर्कहीन परंपराओं को जन्म दिया जिसे सुनकर आप स्तब्ध रह जाएंगे और सोचने पर मजबूर हो जाएंगे की महिलाओं की जिस अवस्था को सामान्य माना जाना चाहिए था उसे कट्टरवादी लोगों द्वारा कैसे अस्वच्छ और अछूत बना दिया गया है। आइए आपको बताते है दुनिया की कुछ ऐसी ही परंपराओं के बारे में।

छौपदी परंपरा - नेपाल (Chhaupadi- Nepal)

छौपदी, नेपाल के कुछ ग्रामीण इलाकों में प्रचलित एक प्राचीन परंपरा है जिसमे युवा लड़कियों को माहवारी या उससे भी अधिक समय के लिए मिट्टी की झोपड़ियों में रहने के लिए गाँव से दूर रखा जाता है। ऐसा करने के पीछे का कारण रूढ़िवादी लोगों द्वारा बताया जाता है कि माहवारी वाली महिलाएं अपने परिवार के लिए दुर्भाग्य या खराब स्वास्थ्य लाएंगी। इस प्रथा के तहत, महिलाओं को खिड़कियों और तालों के बिना मिट्टी और पत्थरों से बनी एक छोटी सी झोपड़ी में सोने के लिए मजबूर किया जाता है। झोपड़ियाँ विशेष रूप से अपने आवासीय घरों से 20-25 मीटर की दूरी पर तैयार की जाती हैं। झोपड़ी में दरवाजे नहीं होते, कमरा बहुत ही संकरा और उसका फर्श बहुत ही गंदा होता हैं, जहां महिलाएं बैठती और सोती हैं। महिलाएं जिन्होंने हाल हीं में बच्चे को जन्म दिया होता है उन्हें भी उनके नवजात बच्चे के साथ उस झोपड़े में जाना होता है क्योंकि बच्चा पैदा करने के 5-11 दिन बाद तक महिलाओं को गहन माहवारी होती है।

माहवारी के अंतिम दिन महिलाएं स्नान करती हैं, अपने कपड़े धोती हैं, बिस्तर धोती हैं और घर लौट आती हैं। अंतिम दिन भी, उन्हें सार्वजनिक जल स्रोतों में खुद को शुद्ध करने की अनुमति नहीं है। छौपदी वाली महिलाओं को गाँव के पास एक अलग "छौपदी धारा" (Chhaupadi Dhara) नाम के कुएँ या नल में स्नान और अपने कपड़े साफ करने पड़ते हैं। हालाँकि साल 2005 में नेपाल सरकार (Nepal Government) द्वारा इस प्रथा को बैन कर दिया गया है लकिन आज भी नेपाल के कई हिस्सों में इसे देखा जा सकता है। जिन महिलाओं और लड़कियों को मासिक धर्म होता है, उनके घर से दूर रहने के दौरान शारीरिक और मनोवैज्ञानिक कठिनाई के साथ-साथ कई स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

छौपदी परंपरा - नेपाल
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छौपदी के कारण होने वाली बीमारियां:

महिलाओं को सर्दियों के दौरान हाइपोथर्मिया (Hypothermia) और गर्मियों के दौरान निर्जलीकरण (Dehydration) के कारण हीट स्ट्रोक (Heat Stroke) होने का उच्च जोखिम होता है। उन झोपड़ियों में बहते पानी की कमी से खराब स्वच्छता के कारण संक्रमण का जोखिम होता है। खराब पोषण के अलावा, जानवरों के हमले, सांप के काटने और बलात्कार (Rape) के प्रयासों का जोखिम महिलाओं के लिए उस समय को बहुत कठिन बना देता है। लंबे समय तक माहवारी वाली महिलाओं का अलग-थलग रहना और किसी से बात करने या अपनी भावनाओं को साझा करने का डर उन महिलाओं को अवसाद (Depression) में भी डाल सकता है।

पेलाज़ोन महोत्सव- ब्राजील, कंबोडिया और पेरू (Pelazon Festival-Brazil, Cambodia and Peru

टिकुना जनजाति (Tikuna Tribe) के पेलाज़ोन समारोह में जब एक लड़की अपना पहला मासिक धर्म शुरू करती है, तो उसे एकांत की अवधि में डाल दिया जाता है, जो लगभग तीन साल तक चल सकता है। पेलाज़ोन का अर्थ होता है लड़की के बालों की कटाई (Hair Cropping)। एकांत अवधि (Isolation Period) समाप्त होने के बाद एक बड़ा समारोह किया जाता है। समारोह के अंत में लड़की को उसकी इंद्रियों को सुन्न करने के लिए एक नशीला पेय प्रदान किया जाता है। पिता फिर बेटी के सिर के प्रत्येक बाल को खींचता है, बालों को खींचने का यह हिंसक कृत्य इस बात का प्रतीक होता है कि लड़की एक महिला बन गई है और बच्चे को जन्म देने के लिए तैयार है।

यौवन के दौर से गुजर रही लड़की को समुदाय से अलग करके जनजाति द्वारा प्रभावी रूप से बलि का बकरा बनाया जाता है। लड़की के पूरे शरीर को काले रंग से रंगा जाता है, चील के पंख (Eagle Feathers) और मुकुट (Crown) पहनाया जाता है। लड़कियों को घोंघे के शंख की बेल्ट भी कमर में धारण करनी होती हैं। घोंघे के शंख लड़की की उर्वरता को दर्शाता हैं इसलिए यह समारोह न केवल इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह उम्र के संस्कार का आगमन है, बल्कि यह एक प्रजनन (Reproduction) अनुष्ठान भी है। समारोह के दौरान लगातार आग पर कूदकर लड़कियों को शुद्ध करने की आवश्यकता होती है, यह इस बात का प्रतीक है कि लड़की किसी भी चुनौती या बाधाओं को दूर करने के लिए एक वयस्क के रूप में सफल होगी।

तुलोनी बिया - असम (Tuloni Biya - Assam)

समाज में ऐसी अधिकांश प्रथाएं है जो 'संरक्षण' और 'स्त्रीत्व के प्रशिक्षण' (Femininity Training) के नाम पर महिलाओं के लिए एक भेदभावपूर्ण स्थान बनाती हैं। तोलिनी शादी या तुलोनी बिया' एक ऐसी ही परंपरा है जो असम के बोगांइ जिले के सोलमारी गांव में की जाती है। छोटी शादी (Mini Marriage) के रूप में मनाया जाने वाला यह मासिक धर्म प्रतिबंध, एक लड़की के बचपन के अंत का परिचय देता है। इस परंपरा के अंतर्गत जब किसी लड़की को रजोदर्शन (Menarche) होते है तो गाँव के लोग इसका जश्न मनाते हैं। यहां रजोदर्शन के उपरांत उसकी शादी केले के पेड़ (Banana Plant) से करा दी जाती है।

शादी के बाद लड़की को एक ऐसे कमरे में बंद कर दिया जाता है जहां सूरज की रोशनी भी न पहुंचती हो। मासिक धर्म खत्म होने के बाद लड़की को केले के पेड़ के पास महिलाओं द्वारा स्नान कराया जाता है। मान्यता के अनुसार लड़की को पका हुआ खाना नहीं दिया जाता है बल्कि इस दौरान वो दूध और फल खाकर अपना दिन गुजारती है। पांच दिनों तक उसे इस कमरे में जमीन पर सोना पड़ता है। यहां तक कि उसे किसी भी इंसान के चेहरे को देखने की इजाजत नहीं होती है। इस तरह की परंपरा न ही सिर्फ लैंगिक समानता (Gender Equality) के इर्द-गिर्द गंभीर सवाल खड़े करती हैं बल्कि यह समाज में समान भागीदारी का बहिष्कार भी करती है ।

ऐसी परंपराएं जिनके नाम नहीं लेकिन आज भी है समाज में जीवित

दक्षिण अफ्रीका (South Africa)

दक्षिण अफ्रीका के ज़ुलु जनजाति (Zulu Tribe) के लोगों में मासिक धर्म शुरू होने वाली लड़की के लिए एक विशेष रस्म होती है। जब एक लड़की को पहली बार मासिक धर्म आता है, तो वह एक कंबल लेती है और अपना सिर ढक लेती है। उसे उसके दोस्तों से अलग कर दिया जाता है और एक बकरी की बलि दी जाती है। अगली सुबह उसे नहलाया जाता है और समुदाय की अन्य महिलाएं उसे नारीत्व का पाठ पढ़ाती हैं।

राजस्थान और दक्षिण भारत (Rajasthan & South India)

राजस्थान में, मासिक धर्म के दौरान लड़कियों को चौराहों पर चलने की अनुमति नहीं है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि जब वे अपनी माहवारी साइकिल पर होती हैं तो उन्हें बुरी आत्माओं का विशेष रूप से खतरा होता है। दक्षिण भारत में, एक बार जब लड़कियों का मासिक धर्म शुरू हो जाता है, तो मान्यता के अनुसार उन्हें लड़कों के साथ संपर्क नहीं करना चाहिए और उन्हें ज्यादा समय बाहर बिताने की अनुमति नहीं होती है। यह देखते हुए कि वे अब गर्भवती हो सकती हैं, ऐसा माना जाता है कि पुरुषों के साथ घुलना-मिलना गलत है विशेष रूप से खतरनाक है।

फिलिपींस (Philippines)

जब एक फिलिपिनो (Fillipino) लड़की को मासिक धर्म होता है, तो उसकी माँ उसके खून से सने अधोवस्र को सादे पानी से धोती है। फिर वह इसे अपनी बेटी के चेहरे पर इस विश्वास के साथ लगाती थी कि ऐसा करने से बाद में मुंहासे (Acne) नहीं होंगे। बेटी को भी सीढ़ियों से तीन कदम छलांग लगानी होती है क्योंकि यह दर्शाता है कि उसके मासिक धर्म कितने दिनों का होगा।

मासिक धर्म आज भी भारत सहित विश्व में एक वर्जित विषय बना हुआ है। मासिक धर्म के बारे में सांस्कृतिक वर्जनाएं किशोर लड़कियों की गरिमा, स्कूल में भागीदारी और स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुंचाती हैं। मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन ( Menstruation Hygiene Management) का ज्ञान और शिक्षा तक महिलाओं और लड़कियों की पहुंच की क्षमता सार्वभौमिक रूप से एक ध्यान न दिया जाने वाला मुद्दा है जिसका मुख्य कारण मिथकों, गलत धारणाओं, मासिक धर्म से संबंधित वर्जनाएँ है क्योंकि मासिक धर्म को आमतौर पर अशुद्ध, गंदा, प्रदूषित और नो गो एरिया माना जाता है।

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