4 घंटे से ज्‍यादा फोन देखना बच्‍चों के लिए हो सकता है जानलेवा
4 घंटे से ज्‍यादा फोन देखना बच्‍चों के लिए हो सकता है जानलेवाRaj Express

4 घंटे से ज्‍यादा फोन देखना बच्‍चों के लिए हो सकता है जानलेवा, स्‍टडी में हुआ खुलासा

बच्‍चों को फोन देखना काफी पसंद है। दोस्‍तों के साथ चैटिंग, गेमिंग और हाेमवर्क करने के लिए वे इसका यूज करते हैं। 4 घंटे से ज्‍यादा मोबाइल देखना बच्‍चों की मेंटल हेल्‍थ को प्रभावित कर रहा है।

हाइलाइट्स :

  • चैटिंग, गेमिंग के लिए हो रहा है फोन का सबसे ज्‍यादा यूज।

  • 4 घंटे से ज्‍यादा देखने से मेंटल हेल्‍थ हो रही है खराब।

  • बच्‍चों में बढ़ी क्रॉस आई की समस्‍या।

  • स्‍लीप साइकिल हो रही है डिस्‍टर्ब।

राज एक्सप्रेस। स्‍मार्टफोन हमारे जीवन का अहम हिस्‍सा है। आज की तारीख में इसके बिना घर से बाहर निकलना भी मुमकिन नहीं है। ऑफिस वर्क, गेमिंग, चैटिंग, मैसेजिंग और बिजनेस मीटिंग में फोन का इस्‍तेमाल बेहद आम हो गया है। आजकल ज्यादातर बच्‍चे 5-5 घंटे फोन स्‍क्रॉल करते हुए बिता देते हैं। यह आदत उनकी सेहत को बुरी तरह प्रभावित कर रही है। हाल ही में सामने आई स्‍टडी के अनुसार, जो बच्‍चे 4 घंटे से ज्‍यादा मोबाइल चलाते हैं, उनकी मेंटल हेल्‍थ खराब हो रही है। इतना ही नहीं स्‍टडी कहती है कि लगातार 4 घंटे तक मोबाइल देखने से मन में आत्‍महत्‍या का ख्‍याल आने लगता है।

साउथ कोरिया में हन्यांग यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर की एक टीम ने टीनएजर्स के स्मार्टफोन के उपयोग और उनके स्वास्थ्य के बीच संबंध की गहरी समझ हासिल करने के लिए 50,000 से ज्‍यादा बच्‍चों के डेटा का विश्लेषण किया।

इसमें पता चला कि हर दिन चार घंटे से ज्‍यादा समय तक स्मार्टफोन का यूज करने वाले न केवल मानसिक तौर पर परेशान रहते हैं, बल्कि नशीले पदार्थों के सेवन में भी उनकी हिस्‍सेदारी बढ़ गई है।

स्‍मार्टफोन कैसे पहुंचा रहा है बच्‍चों को नुकसान

कोरिया के हनयांग यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर के जिन-ह्वा मून और जोंग हो चा और उनके सहयोगियों द्वारा संचालित, निष्कर्ष 6 दिसंबर, 2023 को ओपन-एक्सेस जर्नल पीएलओएस वन में पेश किए गए थे। इस स्टडी के आधार पर हम जानेंगे कि 4 घंटे से ज्‍यादा मोबाइल देखना बच्‍चों के लिए कैसे घातक हो सकता है।

बढ़ रहा है अवसाद

नई स्‍टडी के अनुसार स्मार्टफोन के साथ बिताया गया दिन का 4 घंटा बच्चों में अवसाद और चिंता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ब्रिटिश साइकोलॉजिकल सोसायटी के अनुसार, सोशल मीडिया का उपयोग करने वाले बच्चों और किशोरों में आत्‍मसम्‍मान की बेहद कमी पाई गई है।

डिस्‍टर्ब हो रही है स्‍लीप साइकिल

ज्यादातर बच्चे सोने से पहले अपने स्मार्टफोन का इस्तेमाल करते हैं। देर रात तक बिना सोचे-समझे स्मार्टफोन देखने से थकान और बेचैनी हो सकती है। दरअसल, स्मार्टफोन से निकलने वाली नीली रोशनी मेलाटोनिन उत्पादन को रोकती है, जिससे नींद उड़ जाती है। बता दें कि बच्चों में नींद की कमी न केवल उनके अकेडमिक परफॉर्मेंस को प्रभावित करती है बल्कि उनके शारीरिक विकास, उत्पादकता, ध्यान और ऊर्जा स्तर को भी कम करने के लिए जिम्‍मेदार है।

मस्कुलोस्केलेटल डिसऑर्डर

मोबाइल देखते हुए बच्‍चे कब अपना पॉश्‍चर बिगाड़ लेते हैं, पता नहीं चलता। बैड पॉश्‍चर के कारण उनमें गर्दन में दर्द, सिरदर्द, पीठ दर्द और यहां तक ​​कि कार्पल टनल सिंड्रोम की समस्‍या बढ़ रही है।

चाइल्डहुड मायोपिया

छोटे बच्चे ऑनलाइन गेम खेलने और घंटों तक यूट्यूब वीडियो देखने में व्यस्त रहते हैं, जो वास्तव में उनकी आंखों की रोशनी को प्रभावित कर सकता है। लंबे समय तक स्क्रीन पर घूरने से आंखों में तनाव, सूखापन और जलन की शिकायत हो सकती है। ज्‍यादा स्‍क्रीन स्‍टाइम के कारण बच्‍चों में उम्र से पहले मायोपिया के मामले भी देखे जा रहे हैं।

कम्युनिकेशन स्किल हो गई जीरो

मोबाइल पर मैसेजिंग और टेक्‍सटिंग के बढ़ते क्रेज के चलते बच्‍चों की कम्युनिकेशन स्किल लगभग जीरा हो गई है। वर्तमान में बच्‍चे किसी से मिलने पर न तो वे ठीक से बात कर पाते हैं और न ही उन्‍हें एकदूसरे के सामने अपनी भावना को व्यक्त करना आता है।

क्रॉस आई की समस्‍या

चोन्नम नेशनल यूनिवर्सिटी के एक पॉपुलर रिसर्च के अनुसार, 7 से 16 वर्ष की आयु के अधिकांश बच्चे, जो अपने स्मार्टफोन पर काफी समय बिताते थे, वे क्रॉस-आइड हो गए थे। रिसर्च के निष्कर्ष में कहा गया है कि रोजाना 4 से 8 घंटे स्मार्टफोन पर बिताने से क्रॉस आई की समस्या होने की संभावना सबसे ज्‍यादा रहती है।

मोबाइल से होने वाली ये सभी समस्याएं भले ही अस्थायी हैं, लेकिन डॉक्टरों का सुझाव है कि स्मार्टफोन का उपयोग हर दिन एक निश्चित समय तक सीमित होना चाहिए या बीच-बीच में आंखों को 30 मिनट का ब्रेक देना चाहिए। इसके अलावा बच्चों को अपने फोन को अपनी आंखों से दूर रखना और अपने डिवाइस की ब्राइटनेस को एडजस्‍ट करना सिखाना भी जरूरी है।

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