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परिवारिक पार्टियों का उद्देश्य सिर्फ सत्ता पाना होता है, इनकी कोई विचारधारा नहीं है: जेपी नड्डा

दिल्ली में "वंशवादी राजनीतिक दलों के लोकतांत्रिक शासन के लिए खतरा" पर राष्ट्रीय संगोष्ठी को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने संबोधित किया और कहीं ये बातें...

दिल्‍ली, भारत। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने आज नई दिल्ली में "वंशवादी राजनीतिक दलों के लोकतांत्रिक शासन के लिए खतरा" पर राष्ट्रीय संगोष्ठी को संबोधित किया।

प्रजातांत्रिक व्यवस्था में राजनीतिक दल महत्वपूर्ण उपकरण है :

इस दौरान भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने अपने संबोधन में कहा- प्रजातांत्रिक व्यवस्था में राजनीतिक दल महत्वपूर्ण उपकरण है। अगर वह स्वस्थ हो तो प्रजातंत्र स्वस्थ है। अगर वो अस्वस्थ है तो प्रजातंत्र अस्वस्थ है। इससे धीरे-धीरे प्रजातांत्रिक व्यवस्था पर आघात पहुंचने लगता है। पार्टी का स्वास्थ्य कैसा है, उसके सिस्टम कैसे हैं, ये सब बहुत महत्वपूर्ण है। इस महत्व को समझते हुए हमें ये ध्यान रखना होगा कि हमारे लोकतांत्रिक मूल्य क्या हैं, relation between leaders क्या हैं, संगठन की विचार प्रक्रिया क्या है।

जो परिवारिक पार्टियां हैं उनका उद्देश्य सिर्फ सत्ता पाना होता है,इनकी कोई विचारधारा नहीं है। इनके कार्यक्रम भी लक्ष्यविहीन होते हैं।

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा

  • जम्मू कश्मीर में पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस, पंजाब में शिरोमणि अकाली दल, हरियाणा में INLD, उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी, बिहार में राजद, पश्चिम बंगाल में दीदी- भतीजे की पार्टी है, झारखंड में बाबू जी के बुजुर्ग होने के बाद बेटे ने पार्टी संभाल ली।

  • उड़ीसा में बीजू जनता दल, आंध्रप्रदेश में YSRCP, तेलंगाना में TRS, तमिलनाडु में करुणानिधि परिवार, महाराष्ट्र में शिवसेना और NCP ये सब परिवार की पार्टियां हैं। कांग्रेस भी अब न तो राष्ट्रीय रह गई है, न भारतीय और न ही प्रजातांत्रिक रह गई है, ये भी भाई-बहन की पार्टी बनकर रह गई है।

  • रीजनल पार्टियों को किसी भी तरह से सत्ता में आना होता है, इसलिए ये धुर्वीकरण करने में भी पीछे नहीं रहते हैं। फिर धुर्वीकरण चाहे जाति के आधार पर करें, या धर्म के। राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों को ताक पर रख दिया जाता है और सत्ता को पाने के लिए धुर्वीकरण किया जाता है।

  • क्षेत्रीय पार्टियों में धीरे-धीरे कुछ लोगों ने कब्जा कर लिया है। अब उन क्षेत्रीय पार्टियों में विचारधारा किनारे हो गई और परिवार सामने आ गए। इस तरह से क्षेत्रीय पार्टियां, परिवारवादी पार्टियों में बदल गई हैं।

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