MP में 20 साल बाद हुआ बड़ा बदलाव, चुनाव प्रक्रिया में फेरबदल

मध्यप्रदेश में 20 साल बाद फिर से जनता के बजाय पार्षद, महापौर व अध्यक्ष का चुनाव करेंगे। कमलनाथ सरकार ने नगरीय निकाय चुनावों की प्रक्रिया में बड़ा बदलाव कर दिया है।
कमलनाथ सरकार ने नगरीय निकाय चुनावों की प्रक्रिया में किया बड़ा बदलाव
कमलनाथ सरकार ने नगरीय निकाय चुनावों की प्रक्रिया में किया बड़ा बदलावPankaj Baraiya - RE

राज एक्सप्रेस। मध्यप्रदेश में में चार दिन की सियासी हलचल के बाद मंगलवार को राज्यपाल लालजी टंडन ने म.प्र. नगर पालिक विधि संशोधन अध्यादेश 2019 का अनुमोदन कर दिया। अध्यादेश लागू होने पर नगरीय निकायों में अब करीब 20 साल बाद फिर से जनता के बजाय पार्षद, महापौर व अध्यक्ष का चुनाव करेंगे।

कैसे होते है अप्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव

अप्रत्यक्ष चुनाव प्रक्रिया में जनता के द्वारा चुने जायेगें 'पार्षद', उसके बाद पार्षद मिलकर महापौर व अध्यक्ष को चुनेंगे। इस चुनाव प्रणाली का विपक्ष लगतार विरोध कर रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने इस का विरोध करते हुए राजयपाल से मुलाकात भी की थी। चार दिन से चल रही सियासी गरमा-गरमी के बाद मंगलवार को राज्यपाल ने इस बिल को हरी झंडी दे दी थी।

नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव ने जताया विरोध

अध्यादेश को मंजूरी दिए जाने के बाद नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव ने कहा राज्यपाल का फैसला सर्वमान्य है। लेकिन पार्षदों की ख़रीद-फरोख्त रोकने के लिए सरकार को नगरीय निकायों में भी दल बदल कानून लागू करना चाहिए। इसके लिए भी सरकार अध्यादेश लाए।

विवेक तन्खा ने किया बिल का समर्थन

विवेक तन्खा ने कहा कि, बीजेपी नेताओं के कड़े विरोध के बावजूद महापौरों के अप्रत्यक्ष चुनावों के अध्यादेश को मंजूरी देने के लिए मध्यप्रदेश के राज्यपाल के निर्णय का स्वागत करते हैं। यह कानून में हमारे विश्वास को मजबूत करता है।

राज्यपाल ने भी जारी किया बयान

अध्यादेश पर मंजूरी के बाद राज्यपाल ने एक बयान भी जारी किया। इसमें उन्होंने कहा कि संवैधानिक पदों के विवेकाधिकार पर टीका-टिप्पणी करना संवैधानिक मर्यादाओं का उल्लंघन है। राज्यपाल पद की गरिमा, निष्पक्ष और निर्विवादित है। इस पर किसी भी प्रकार का प्रत्यक्ष या परोक्ष दबाव बनाना संवैधानिक मर्यादाओं का उल्लंघन है। यह कृत्य स्वस्थ लोकतांत्रिक परंपराओं के लिए हानिकारक है। लोकतांत्रिक परंपराओं की गरिमा, निष्पक्षता और निर्विवादित कर्तव्य पालन के लिए यह अत्यंत आवश्यक है कि संवैधानिक पद निष्पक्ष और बिना किसी दबाव के कार्य करे। किसी विषय पर विचारों को व्यक्त करने में संवैधानिक मर्यादाओं का पालन किया जाए।

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