मनरेगा में अब न तो रोजगार बचा है, न ही रोजगार की गारंटी : शशि थरूर
मनरेगा में अब न तो रोजगार बचा है, न ही रोजगार की गारंटी : शशि थरूरSocial Media

मनरेगा में अब न तो रोजगार बचा है, न ही रोजगार की गारंटी : शशि थरूर

शशि थरूर ने वर्ष 2022-23 के आम बजट पर लोकसभा में सोमवार को चर्चा शुरू करते हुए मनरेगा का बजट कम किए जाने पर सरकार की जम कर खिचाई की।

नई दिल्ली। कांग्रेस पार्टी सांसद शशि थरूर ने वर्ष 2022-23 के आम बजट पर लोकसभा में सोमवार को चर्चा शुरू करते हुए मनरेगा का बजट कम किए जाने पर सरकार की जम कर खिचाई करते हुए कहा कि मौजूदा सरकार की नीतियों के कारण सूक्ष्म, लघु और मझोली इकाइयों के सामने संकट है तथा रोजगार के अवसर बढ़ नहीं रहे हैं।

श्री थरूर ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) को कांग्रेस सरकारों की विफलता की योजना बताते आ रहे थे पर यह योजना कोरोना काल में भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए 'वेंटिलेट' का काम किया। उन्होंने इस बार के बजट में मनरेगा का बजट घटा कर केवल 73,000 करोड़ रुपये के प्रावधान को अपर्याप्त बताते हुए कहा कि इससे जरूरत मंदों को ज्यादा से ज्यादा 16-20 दिन के रोजगार दिया जा सकता है जबकि इस योजना के तहत साल में 100 दिन के रोजगार की कानूनी गारंटी है।

उन्होंने कहा इस योजना में ग्रामीण क्षेत्र में लोगों 100 दिन के रोजगार की गारंटी के लिए 3.5 लाख करोड़ रुपये की जरूरत होगी। सरकार ने बजट कम कर दिया है। उन्होंने कहा, "इस तरह मनरेगा में न तो रोजगार रह गया है, न ही रोजगार की गारंटी।"

कांग्रेस सांसद ने कहा, "मनरेगा यूपीए के समय का एक स्मारक है। महामारी में यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था का वेंटिलेटर रहा। इस स्मारक को हमने खड़ा किया और इसकी विफलता के लिए आप जिम्मेदार है।"

उन्होंने कहा कि देश में काम करने लायक 5.3 करोड़ लोग रोजगार के इंतजार में बैठे हैं यह संख्या हर साल बढ़ रही है। जबकि रोजगार के नए अवसरों के सृजन की रफ्तार बहुत कम है। उन्होंने कहा आज स्थिति के वर्णन के लिए दुषयंत कुमार की पक्तियां सटीक हैं- कहाँ तो तय था चिरागाँ हरेक घर के लिए, कहाँ चिराग़ा मयस्सर नहीं शहर के लिए।

उन्होंने यह भी कहा कि सरकार ने ऊर्वरक और पेट्रोलियम सब्सिडी का भी बजट कम कर दिया है। इसका असर आम आदमी पर पड़ेगा।

श्री थरूर ने कहा कि कृषि के लिए अजट प्रावधनों में 4.4 प्रतिशत की मामूली सी वृद्धि की गयी है। शिक्षा और स्वास्थ्य बजट के लिए भी प्रावधान देश की रूरतों को देखते हुए बहुत कम हैं। उन्होंने कहा कि रक्षा क्षेत्र में आत्म निर्भरता की बात करने वाली सरकार ने रक्षा बजट में 4.3 प्रतिशत की बढ़ोतरी से अगर महंगाई को घटा दें तो वास्तव में रक्षा बजट कम हो गया है।

उन्होंने कहा कि सरकार की निजीकरण की नीति डांवाडोल है। पिछली बार दो बैंकों और एक बीमा कंपनी के निजीकरण की बात की गयी थी पर अभी पता नहीं है कि वह वायदा कहां गया। इस बार बजट में निजीकरण का कोई लक्ष्य नहीं है।

उन्होंने सरकार पर सूक्ष्म, मझौले और लघु उद्यम क्षेत्र (एमएसएमई) की उपेक्षा करने का आरोप लगाते हुए कहा कि नोटबंदी के समय 60 लाख एमएसएमई इकाइयां बंद हो गयी थी। कोरोना के समय उनके लिए घोषित आपातकालीन कर्ज गारंटी योजना पर्याप्त नहीं है। आज 50 प्रतिशत इकाइयों का कारोबार घट गया है।

कांग्रेस सदस्य ने कहा कि देश में विषमता का बढ़ना चिंता का विषय है क्यों कि इससे समाज का ताना बनाबाना बिगड़ने का खतरा है।

भाजपा के निशिकांत दूबे ने बजट को भारत के विकास की नीव मजबूत करने वाला बताया और कहा कि इसमें नदियों को जोड़ने की योजना से विभिन्न राज्यों में सिंचाई और पेयजल सुविधाओं का विस्तार होगा तथा लोगों का फायदा होगा। उन्होंने बजट में डिजिटल विश्वविद्यालय की स्थापना की घोषणा और अन्य प्रस्तावाओं का जिक्र करते हुए कहा कि आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर यह बजट दूरदर्शी बजट है।

उन्होंने चर्चा की शुरू करने वाले कांग्रेसी सदस्य के शेरो शयरी भरे बयान के जवाब में दुषयंत की यह कविता पढ़ी- तुम्हारे पाँव के नीचे कोई जमीन नहीं, कमाल ये है कि फिर भी तुम्हें यकीन नहीं।

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