माखनलाल चतुर्वेदी जयंती: जाने स्वतंत्रता संग्राम और पत्रकारिता से जुड़े कुछ रोचक किस्से

स्वतंत्रता संग्राम और पत्रकारिता के लिए माखनलाल चतुर्वेदी ने एक शिक्षक की सरकारी नौकरी से भी त्यागपत्र दे दिया था।
माखनलाल चतुर्वेदी (Makhanlal Chaturvedi)
माखनलाल चतुर्वेदी जयंती: जाने स्वतंत्रता संग्राम और पत्रकारिता से जुड़े कुछ रोचक किस्सेRE
Author:
Shreya N
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3 min read

हाइलाइट्स:

  • मजिस्ट्रेट के सामने अंग्रेजी अखबार को कहा दब्बू।

  • स्वतंत्रता संग्राम के चलते 12 बार जाना पड़ा था जेल।

  • गोसंरक्षण के लिए चलाया देशव्यापी अभियान।

Raj Express। अपनी रचना ‘पुष्प की अभिलाषा’ के लिए जाने जाने वाले स्वतंत्रता सेनानी और पत्रकार पंडित माखनलाल चतुर्वेदी (Makhanlal Chaturvedi) की आज जन्म जयंती (Birth Anniversary) है। उनका जन्म 4 अप्रैल, 1889 को मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले के बाबई गांव में हुआ था। दादा माखनलाल चतुर्वेदी ने समाचार पत्रों के माध्यम से देश की आज़ादी की लड़ाई में अहम भूमिका निभाई है। समाचार पत्र ‘कर्मवीर’ (Karmveer) उनका सबसे चर्चित अखबार था। इसके अलावा उन्होंने 'प्रभा' और प्रताप जैसे अखबारों का भी संपादन किया है। स्वतंत्रता संग्राम और पत्रकारिता के लिए माखनलाल चतुर्वेदी ने एक शिक्षक की सरकारी नौकरी से भी त्यागपत्र दे दिया था।

मजिसट्रेट के सामने प्रस्तुत हुए माखनलाल चतुर्वेदी

कर्मवीर जिस समय आया, उस समय हिंदी भाषा के अखबार छापने मजिस्ट्रेट से इजाजत लेनी होती थी। अनुमति प्राप्त करने के लिए समाचार-पत्र के प्रकाशन का उद्देश्य बताना होता था। इसी संदर्भ में माखनलाल जी कर्मवीर के घोषणा पत्र की व्याख्या करने जबलपुर गये थे। इस समय सभी ने उन्हें गरीबी और पेट भरने के चलते अखबार प्रकाशित करने की इजाजत मांगने को कहा। पर उन्होंने ऐसा नहीं किया। मेजिस्ट्रेट ने अंग्रेजी अखबार होते हुए, हिंदी अखबार छापने की वजह पूछे जाने पर, उन्होंने बड़ा साहसी जवाब दिया। पं. माखनलाल चतुर्वेदी ने कहा कि- “आपका अंग्रेजी पत्र तो दब्बू है। मैं वैसा पत्र नहीं निकालना चाहता। मै ऐसा पत्र निकालना चाहूँगा कि ब्रिटिश शासन चलते-चलते रुक जाए।” माखनलाल चतुर्वेदी (Makhanlal Chaturvedi) का साहस देख मजेस्ट्रेट प्रभावित हुए और उन्हें अखबार निकालने की इजाजत दे दी। 17 जनवरी, 1920 को जबलपुर से ‘कर्मवीर’ का प्रकाशण शुरु हुआ।

'कर्मवीर' अखबार
'कर्मवीर' अखबारRE

जाना पड़ा था जेल

माखनलाल चतुर्वेदी (Makhanlal Chaturvedi) की पत्रकारिता का मुख्य उद्देश्य देश की आज़ादी था। इसके चलते उन्हें 12 बार जेल जाना पड़ा। कई बार उनके घर की तलाशियां हुई और छापे पड़े। असहयोग आंदोलन (Civil Disobedient Movement) में भाग लेने के कारण 1922 में जब वे जेल गए, तब ‘कर्मवीर’ का प्रकाशन भी बंद हो गया था। जेल से रिहाई के बाद 1925 से ‘कर्मवीर’ का पुन: प्रकाशन प्रारंभ हुआ। 11 जुलाई, 1959 का ‘कर्मवीर’ का अंक माखनलाल चतुर्वेदी द्वारा संपादित अंतिम अंक था।

गोसंरक्षण के लिए चलाया अभियान

माखनलाल चतुर्वेदी (Makhanlal Chaturvedi) ने अपनी पत्रकारिता के दौरान गौ-संरक्षण के लिए एक देशव्यापी अभियान चलाया था। उस जमाने में अंग्रेजों ने देश भर में कई कसाईखाने (Slaughterhouse) बना रखे थे। माखनलाल चतुर्वेदी ने अपने अखबार के माध्यम से इसका खुलकर विरूद्ध किया। 1920 में अंग्रेजी अखबार ‘हितवाद’ (Hitavada) में अंग्रेजों के एक कसाईखाने का चार पन्नों का विज्ञापन छपा था। ये सागर के रतौना की फैक्ट्री का विज्ञापन था, जहां हर महीने 2 लाख से ज्यादा गोवंश का कत्ल करने की योजना थी। अपनी एक यात्रा के दौरान माखनलाल चतुर्वेदी (Makhanlal Chaturvedi) ने यह विज्ञापन पढ़ लिया। इसके बाद वे तुरंत जबलपुर पहुंचे और ‘कर्मवीर’ में इस संबंध में एक संपादकीय लिखा। माखनलाल चतुर्वेदी के संपादकीय ने देश भर में गोसंरक्षण को एक मुहिम शुरू कर दी। दी। इस आंदोलन में भारत के हिंदू और मुसलमानों ने साथ आकर लड़ाई लड़ी थी। परिणाम स्वरुप तीन महीने के अंदर ही फैक्ट्री बंद हो गई।

देश की आज़ादी, आंदोलनों, साहित्य और पत्रकारिता के क्षेत्र में अपना बहूमुल्य योगदान देने के बाद 30 जनवरी, 1968 को 80 वर्ष की आयु में माखनलाल चतुर्वेदी (Makhanlal Chaturvedi) का निधन हो गया।

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