कोरोना महामारी से बचने शुरू में जिस तरह टीकाकरण को लेकर सरकारों ने खूब उत्साह दिखाया और देश में बने दो टीके चरणबद्ध तरीके से लगाने की रूपरेखा तैयार की गई, उससे लगा था कि अब देश में कोरोना का खतरा जल्दी टल जाएगा। पहले मुफ़्त टीकाकरण अभियान चलाया गया, फिर निजी अस्पतालों को 250 रुपए में लगाने की इजाजत दी गई, इस तरह टीकाकरण अभियान में तेजी आने की उम्मीद जगी थी। मगर फरवरी में कोरोना का नया रूप उभर आया और तेजी से फैलना शुरू हो गया। अब फिर वही ढाक के तीन पात वाली स्थिति हो गई है। कोरोना वायरस संक्रमण की दूसरी लहर के बीच देश के 204 जिलों में कम टीकाकरण हुआ है, जबकि 306 जिलों में 20 फीसदी से अधिक पॉजिटिविटी रेट दर्ज किया गया है। कोरोना का संक्रमण शहरों से निकलकर गांवों तक में पहुंच रहा है। अब विशेषज्ञ कह रहे हैं कि अगर गांव में मौत का आंकड़ा बढ़ा तो हालात वर्तमान से भी भयावह हो सकते हैं।
माना कि कोरोना के खिलाफ चल रहे वैक्सीनेशन प्रोग्राम में भारत रोजाना नए रिकॉर्ड बना रहा है। भारत में अब तक 17 करोड़ एक लाख, 53 हजार 432 से भी ज्यादा लोगों को वैसीन लगाई जा चुकी है। वैसीनेशन के 114वें दिन, यानी कि 9 मई को देशभर में 6 लाख से अधिक लोगों को यह वैक्सीन लगाई गई है। इस दौरान कुल तीन लाख 97 हजार 231 से ज्यादा लोगों को पहली डोज, जबकि दो लाख 74 हजार, 415 से ज्यादा लोगों को दूसरी डोज लगाई गई है। यह भी मान लिया कि भारत पूरी दुनिया में सबसे तेजी से 17 करोड़ से अधिक लोगों का वैक्सीनेशन करने वाला पहला देश बन गया है। देश में वैक्सीनेशन प्रोग्राम शुरू होने के बाद से भारत ने यह मुकाम महज 114 दिनों में हासिल किया है। भारत के बाद इस सूची में अमेरिका आता है। लेकिन हमें यह भी स्वीकार करना होगा कि हम जिन देशों से तुलना कर रहे हैं, वहां की आबादी भारत से कम है। कई देश आबादी का 80 फीसदी टीकाकरण कर चुके हैं।
भले ही भारत में पूरी दुनिया के मुकाबले सबसे ज्यादा लोगों को टीका लगाया जा चुका है, लेकिन पूरी आबादी के हिसाब से यह अभी 2.5 फीसदी ही है। आंकड़ों पर गौर करें तो टीकाकरण में महाराष्ट्र अव्वल है, लेकिन यहां अभी 1.72 फीसदी आबादी को ही कोरोना का दूसरा टीका लगा है। इस वक्त जब देश में संक्रमितों की संख्या तेजी से बढ़ रही है और इससे मरने वालों की तादाद चार हजार से ऊपर आ रही है, तब टीकाकरण में तेजी लाने की मांग भी बढ़ रही है। मगर स्थिति यह है कि इस वक्त टीकों का भारी अभाव है। न निजी अस्पतालों में टीके उपलब्ध हैं और न ही सरकारी केंद्रों पर। जिस सीरम इंस्टीट्यूट के टीके पर सरकार की निर्भरता सबसे अधिक थी, उसने अब जरूरत भर के टीके उपलब्ध कराने को लेकर अपने हाथ खड़े कर दिए हैं। यह समय परीक्षा का है। इसलिए सभी मिलकर संकट से बाहर आएं। सरकार भी और हम भी।
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