उलझन में दिल्ली का समीकरण

दिल्ली विधानसभा का चुनाव प्रचार अब अंतिम दौर में है। राजधानी के सियासी परिस्थितियों में बदलाव ने सियासी समीकरण को उलझा कर रख दिया है।
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राज एक्सप्रेस। दिल्ली विधानसभा का चुनाव प्रचार अब अंतिम दौर में है। राजधानी के सियासी परिस्थितियों में बदलाव ने सियासी समीकरण को उलझा कर रख दिया है। इस समय तो कोई भी दल यह दावा कर पाने की स्थिति में नहीं है कि सत्ता किसके हाथ लगेगी। अंतिम दौर में सभी दल अपनी-अपनी रणनीति में बदलाव पर मजबूर हुए हैं।

आपका चेहरा अरविंद केजरीवाल विक्टिम कार्ड खेल रहे हैं तो भाजपा पहले की तुलना में ज्यादा आक्रामक हुई है। अब तक शांत दिख रही कांग्रेस ने भी अचानक तेवर दिखाने शुरू किए हैं। अब जबकि चुनाव प्रचार खत्म होने में महज कुछ घंटे बचे हैं, तब सियासी दलों ने चुनाव प्रचार तेज करते हुए बदली सियासी परिस्थितियों में अपनी रणनीति का नए सिरे से आंकलन शुरू किया है। अब तो दिल्ली के चुनावी दंगल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एंट्री हो गई है। मोदी ने रैली कर पूर्वी और उत्तर-पूर्वी दिल्ली की सभी 20 विधानसभाओं के मतदाताओं को साधा है। मंगलवार को वे द्वारका में चुनावी रैली को संबोधित करेंगे। विधानसभा चुनावों के लिए प्रचार अभियान की शाम को थम जाएगा। इसीलिए भाजपा इन बचे हुए चार दिनों में अपनी पूरी ताकत प्रचार में झोंकने वाली है।

शाहीन बाग आंदोलन की खिलाफत कर कोर वोटर को साध चुकी भाजपा की निगाहें कांग्रेस के प्रदर्शन पर हैं जबकि आप-कांग्रेस की निगाहें जनादेश की चाबी हाथ में रखने वाली मुस्लिम-दलित (29 फीसदी) के रुख पर है। शाहीन बाग के मुद्दे ने अचानक चुनाव की हवा बदल दी है। शुरुआत में आप मुफ्त बिजली-पानी-सफर योजना के कारण आगे थी। इसी बीच भाजपा के आक्रामक प्रचार से चुनाव में सीएए के खिलाफ शाहीन बाग में हो रहा धरना चुनाव प्रचार का मुख्य केंद्र बन गया। इस मुद्दे ने भाजपा को मजबूती दी है। मगर सवाल यह है कि इसकी प्रतिक्रिया में मुस्लिम बिरादरी एकजुट हो कर वोट करेगी या बंटकर। अगर एकजुट होगी तो वोट किसे जाएगा। जाहिर तौर पर अगर बंटी तो इसका लाभ भाजपा ले जाएगी। दिल्ली में भाजपा के कोर वोट 32 से 35 फीसदी हैं। शुरुआती दौर में ये वोट असमंजस में थे और पार्टी कार्यकर्ताओं में निराशा थी।

हालांकि अमित शाह के आक्रामक प्रचार और शाहीन बाग के मुद्दे के तूल पकड़ने के बाद माना जा रहा है कि भाजपा अपने कोर वोटरों को साधने में सफल रही है। मगर सवाल है कि इससे आगे क्या? क्या इसका असर उन मतदाताओं पर भी पड़ा है जिसने उसे लोकसभा चुनाव में बढ़त दी थी? क्या कांग्रेस राज्य में बेहतर प्रदर्शन की स्थिति में है? अगर ऐसा नहीं है तो 2015 की तरह भाजपा विरोधी वोट का आप के पक्ष में ध्रुवीकरण होगा। फिर असरदार चेहरे का अभाव और गांधी परिवार की दिल्ली चुनाव से दूरी से कांग्रेस मजबूत संदेश नहीं दे पा रही। अंतिम समय में राहुल की रैलियों की चर्चा है। पार्टी ने केजरीवाल को शाहीन बाग जाने की चुनौती देकर उपस्थिति दर्ज कराने की कोशिश की है। बावजूद संदेश यही है कि मुकाबला भाजपा और आप के बीच है।

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