NIT Silchar : कॉलेज प्रशासन के निर्दयता ने ली छात्र की जान, मुख्यधारा मीडिया में खामोशी, क्या है वजह?
हाइलाइट्स :
एनआईटी सिलचर में पढ़ने वाले छात्र कोज बुकर ने अपने हॉस्टल रूम में की खुदकुशी
अत्यधिक शैक्षणिक दबाव के कारण बुकर ने ली अपनी जान
डीन के बर्ताव को लेकर आक्रोशित कॉलेज के पूरे छात्र
प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को भेजा मामले में हस्तक्षेप करने का ज्ञापन
राज एक्सप्रेस। साल 2009 में आमिर खान की एक फिल्म आई थी जिसका नाम था 'थ्री इडियट्स' (3 Idiots)। उस फिल्म में एक ऐसा डायलॉग है जो शायद आज इस लेख की हाईलाइट हो सकता है। आपको याद होगा कि आमिर खान डॉ. वीरू सहस्त्रबुद्धे से अपने दोस्त की खुदकुशी का उद्धरण करते हुए कहते है कि "यह सुसाइड नहीं मर्डर है।" आज लगभग 14 साल बाद इस लेख के माध्यम से ऐसे ही एक मर्डर की कहानी आप तक पहुंचाने का प्रयास कर रहे है।
यह कहानी है अरुणाचल प्रदेश के एक छोटे से गांव ज़ीरो के 20 से 21 वर्षीय लड़के कोज बुकर (Koj Buker) की जिसने 14 सितंबर को असम के एनआईटी सिलचर (NIT Silchar) के अपने हॉस्टल रूम में खुदकुशी कर ली और अब वर्तमान में कोज के मित्र और साथी छात्र हॉस्टल डीन के खिलाफ सड़कों पर धरने में बैठे हैं लेकिन इस मामले की चर्चा न के बराबर हो रही है।
क्या है कोज बुकर की पूरी कहानी?
असम के एनआईटी सिलचर (NIT Silchar) में 15 सितंबर को इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के तीसरे वर्ष के छात्र कोज बुकर ने अत्यधिक शैक्षणिक दबाव के कारण अपनी जान ले ली। कोज को कोविड-19 के कारण कठिन समय का सामना करना पड़ा। वह अरुणाचल प्रदेश के एक ग्रामीण इलाके से आया था और खराब इंटरनेट के कारण उसके लिए ऑनलाइन कक्षाओं में भाग लेना कठिन हो गया, जिसके परिणामस्वरूप उसके पहले सेमेस्टर में कई बैकलॉग (Backlogs) हो गए। हालात तब और खराब हो गए जब उन्होंने अपने तीसरे वर्ष के लिए पंजीकरण कराने की कोशिश की, लेकिन कॉलेज प्रशासन ने उसे मना कर दिया। कोज ने अपने बैकलॉग पेपरों के लिए प्रशासन, विशेषकर डीन एकेडमिक्स, डॉ. बीके रॉय (Dean Academics, Dr. BK Roy) से मदद की गुहार लगाई।
वह प्रतिदिन प्रशासन के पास जाता था और सभी से मदद की गुहार लगाता था ताकि वह इंटरनेट की खराब सेवा के कारण हुए घाटे की भरपाई कर सके लेकिन प्रशासन उसे नज़रअंदाज करता रहा। हद तो तब हो गई जब कथित तौर पर 15 सितंबर को, डीन रॉय ने कोज के स्पेशल परीक्षा कराने वाले आवेदन को सबके सामने फाड़ दिया और फोन पर कोज के पिता का अपमान किया। कोज, डीन द्वारा इस अमानवीय बर्ताव को झेल नहीं पाया और मानसिक दबाव में आकर उसने अपने हॉस्टल नंबर 7 के कमरे में फांसी लगाकर जान दे दी।
मृत शरीर मिलने के बावजूद कॉलेज प्रशासन गायब :
कोज के दोस्तों ने उसके मृत शरीर को ढूंढ लिया, लेकिन हैरानी की बात यह है कि हॉस्टल वार्डन को छोड़कर कॉलेज प्रशासन से कोई भी नहीं आया, यहां तक कि निदेशक या डीन रॉय भी नहीं आए। जिसके बाद छात्र क्रोधित हो गए और उन्होंने डीन रॉय के घर तक मार्च किया और उनसे इस्तीफे की मांग की। प्रशासन ने छात्रों की सुनने के बजाय पुलिस को बुलाया, जिसने छात्रों पर बल प्रयोग किया, लड़कियों पर भी लाठीचार्ज किया। करीब 40 छात्रों को चोट लगी। पुलिस के अनुसार छात्रों ने डीन के सरकारी घर और सरकारी गाड़ियों में तोड़फोड़ की जिसकी वजह से उन्हें बल का प्रयोग करना पड़ा। छात्रों ने कथित तौर पर पुलिसकर्मियों पर भी हमला किया था।
लेकिन छात्रों का कहना है कि पुलिस ने पहले उनके शांतिपूर्ण मार्च के विरोध में लाठीचार्ज किया जिसके बाद स्थिति हिंसक हो गई। यही नहीं, बेहदगी की हद तो तब पार हो गई जब एनआईटी सिलचर के निदेशक प्रो. दिलीप कुमार बैद्य ने कोज को अपनी ही मौत के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि यह घटना "छोटा मोटा" थी, या मीडिया में कोई बड़ी बात नहीं थी। इससे पता चलता है कि उन्हें शीर्ष प्रबंधन की कितनी कम परवाह थी और अमानवीयता थी।
क्या है वर्तमान स्थिति ?
वर्तमान में, सूरते हाल यह है कि डीन बीके रॉय को प्रतिस्थापित कर दिया गया है लेकिन अभी भी 2000 से अधिक छात्र पिछले 2 दिन से डीन के आवास के सामने अनिश्चितकाल के लिए भूख हड़ताल पर बैठे हुए है। भूख हड़ताल की वजह से कुछ छात्रों को कमजोरी होने के कारण अस्पताल में भर्ती भी कराया गया है। वह डीन बीके रॉय के इस्तीफे की मांग कर रहे है। इससे पहले 16 सितंबर को उन्होंने न्याय की मांग करते हुए एक मार्च निकाला था और कोज को याद करते हुए कैंडल जलाई थी।
हालांकि, उनके इस मार्च में भी एक भी कॉलेज प्रशासन का व्यक्ति शामिल नहीं हुआ था। छात्रों ने अपनी 6 प्रमुख मांगों को लेकर एनआईटी के अधिकारियों को ज्ञापन भी सौंपा और पुलिस कमिश्नर ने भी जांच के आदेश दे दिए है। छात्रों के संगठन ने असम सरकार, राज्यपाल सहित प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को ज्ञापन भेजा है कि वह भी इस विषय में हस्तक्षेप करे। पिछले 6 दिनों से कॉलेज की पढ़ाई भी ठप पड़ी हुई है क्योंकि छात्रों ने क्लास का बहिष्कार कर रखा है।हालांकि, कॉलेज प्रशासन द्वारा एक कमेटी का गठन किया गया है जो इस मामले की तह तक जांच करेगी ।
कोज के परिजनों ने खड़े किए सवाल :
कोज के परिवार ने कहा कि
'बुकर शांत और अंतर्मुखी था और उसने कैंपस में होने वाली किसी भी कठिनाई के बारे में उनसे बात नहीं की थी। उन्होंने कहा कि वे अपनी अगली कार्रवाई पर निर्णय लेने से पहले जांच से आगे की जानकारी का इंतजार करेंगे।'
कोज के चाचा एटे हैली (Ate Hailey) ने कहा कि
'जब उन्होंने कई पेपर पास नहीं किए तो परिवार हैरान रह गया। हम इस बात से आश्चर्यचकित थे कि ऐसा कैसे हो सकता है क्योंकि वह एक प्रतिभाशाली लड़का था और वह एनआईटी में प्रवेश के लिए परीक्षा पास करने में कामयाब रहा था।कोज ने इस बारे में ज्यादा कुछ नहीं बताया कि क्या गलत हुआ था और कहा कि वह बाद में पेपर क्लियर कर लेंगे। हमने यह भी सोचा कि इंजीनियरिंग पाठ्यक्रमों में बैकलॉग होता है, क्योंकि यह इतना आसान नहीं है। कोज के चाचा ने आगे कहा कि उन्होंने एनआईटी के लिए अर्हता प्राप्त की और अपनी पसंद से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग को चुना, लेकिन हम इस बारे में स्पष्ट नहीं हैं कि उनकी मृत्यु की वजह और क्या परिस्थितियाँ थी, क्योंकि उन्होंने बहुत कुछ साझा नहीं किया था और वह छात्रावास में थे।'
प्रतिष्ठित संस्थानों में आत्महत्या के मामलों में हो रही बढ़ोतरी :
केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री सुभाष सरकार (Union Minister of State for Education Subhash Sarkar) ने इसी साल मार्च महीने में संसद में डेटा साझा किया था जिसके अनुसार तकरीबन 61 छात्रों ने 2018 से आईआईटी (IIT) एनआईटीएस (NIT) और आईआईएम (IIM) जैसे बड़े और प्रतिष्ठित संस्थानों में आत्महत्या की है। डेटा से पता चला है कि इन संस्थानों में आत्महत्या की दर 2018 के बाद से बढ़ी है, जिसमें 2018 में 11 मौतें दर्ज की गईं। 2019 में, यह बढ़कर 16 हो गया, लेकिन 2020 और 2021 में घटकर क्रमशः पांच और सात रह गया। ये कोविड-19 महामारी के वर्ष थे और छात्रों को घर भेज दिए जाने के कारण परिसर ज्यादातर खाली थे, पर जब 2022 में महामारी समाप्त हो गई, तो इस वर्ष में 16 मौतों के साथ संख्या फिर से तेजी से बढ़ी है।
तो, अहम सवाल यह है कि आईआईटी और एनआईटीएस जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में आत्महत्याओं का अंतर्निहित का सिलसिला आखिर कब खत्म होगा और सवाल यह भी उठता है कि जब भी उत्तर-पूर्वी इलाके में ऐसी बड़ी घटनाएं होती है तो क्यों मीडिया में इस मामले की चर्चा नहीं होती? एनआईटी जैसे अहम संस्थान में पढ़ाई ठप है और छात्र सड़को पर न्याय की भीख मांग रहे है,लेकिन प्रशासन और मीडिया खामोश है।
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