MGNREGS: मनरेगा में रोजगार के अवसरों पर ग्रहण, फरवरी में मांग 6 माह की ऊंचाई पर पहुंची

MG-NREGS डैशबोर्ड में दर्शाया गया कि फरवरी में 30.58 मिलियन युवाओं ने योजना में काम मांगा। FY22 में, 31.74 मिलियन युवाओं को काम की तलाश थी।
MGNREGS: मनरेगा में रोजगार के अवसरों पर ग्रहण, फरवरी में मांग 6 माह की ऊंचाई पर पहुंची।
MGNREGS: मनरेगा में रोजगार के अवसरों पर ग्रहण, फरवरी में मांग 6 माह की ऊंचाई पर पहुंची।Syed Dabeer Hussain – RE

हाइलाइट्स –

  • मनरेगा में घटे रोजगार अवसर!

  • कारण MGNREGS बजट में कमी!

  • वित्त वर्ष में अब तक की सबसे कम मांग!

राज एक्सप्रेस। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना (Mahatma Gandhi National Rural Employment Scheme/MGNREGS) के तहत काम की मांग फरवरी में छह महीने के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई। यह स्थिति दर्शाती है कि; गांवों से प्रवासी श्रमिकों को आकर्षित करने के लिए शहरी केंद्रों में आर्थिक गतिविधियां अभी तक पर्याप्त रूप से नहीं बढ़ी हैं।

ग्रामीण युवाओं के लिए जब रोजगार का कोई बेहतर अवसर उपलब्ध नहीं हो तब मांग-संचालित MGNREGS आजीविका के लिए फॉल-बैक विकल्प प्रदान करता है। योजना के तहत काम की मांग; विभिन्न कारकों जैसे वर्षा, योजना के बाहर वैकल्पिक और लाभकारी रोजगार के अवसरों की उपलब्धता से प्रभावित होती है।

डैशबोर्ड में दर्शाया -

MG-NREGS डैशबोर्ड में दर्शाया गया कि फरवरी में 30.58 मिलियन ग्रामीण युवाओं ने योजना के तहत काम की मांग की। वित्तीय वर्ष 22 (FY22) के अगस्त में, अधिक संख्या में युवाओं (31.74 मिलियन) ने काम मांगा।

सितंबर-अक्टूबर के खरीफ कटाई महीनों के दौरान, योजना के तहत चालू वित्त वर्ष में अब तक की सबसे कम काम की मांग दर्ज हुई। काम की मांग हर महीने लगभग 25.5 मिलियन थी।

सरकारी किफायत! -

बेशक, फरवरी में इस योजना के तहत रोजगार सृजन के व्यक्ति दिवस पिछले तीन महीनों में सबसे कम थे जो दर्शाता है कि सरकार, वित्तीय बाधाओं को देखते हुए, योजना के लिए धन जारी करने के साथ और अधिक किफायती हो गई है।

सनद रहे, जब महामारी देश में कहर बरपा रही थी, खासकर पहली लहर के दौरान योजना के लिए बजट परिव्यय बढ़ाया गया था और उदारतापूर्वक धन जारी किया गया था।
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काम की पेशकश में गिरावट! -

बजट के सख्त होने से योजना के तहत काम की पेशकश में गिरावट आई है। चालू वित्तीय वर्ष में अभी तक एक ग्रामीण परिवार को योजना के तहत सिर्फ 47.97 दिन का काम मिला है। पिछले पूरे वित्त वर्ष में औसत 51.52 दिन होकर अधिक था।

प्राण विहीन योजना! -

यह उन गांवों में प्रत्येक लाभार्थी परिवार को न्यूनतम 100 दिनों की मजदूरी रोजगार गारंटी प्रदान करने के लिए योजना के जनादेश के खिलाफ है, जिनके वयस्क सदस्य प्रत्येक वित्तीय वर्ष में अकुशल शारीरिक कार्य करने के लिए स्वेच्छा से काम करते हैं।

ऐसे में योजना का मूल उद्देश्य प्रभावित होने से महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना (Mahatma Gandhi National Rural Employment Scheme/MG-NREGS) प्राण विहीन होती जा रही है।

लाभार्थी परिवारों की संख्या -

चालू वित्त वर्ष के दौरान अब तक काम का लाभ उठाने वाले परिवारों की संख्या पिछले वित्त वर्ष में 75.5 मिलियन की तुलना में 70 मिलियन से थोड़ा कम है। FY19 में 52.7 करोड़ की तुलना में FY20 में 54.8 मिलियन परिवारों को काम मिला।

अब तक कितना फंड जारी? -

चालू वित्त वर्ष में इस योजना के तहत अब तक कुल एक लाख करोड़ रुपये खर्च करने की अनुमानित जरूरत के मुकाबले केंद्र ने 88,526 करोड़ रुपये जारी किए हैं।

यह देखते हुए कि हाल के बजट में संशोधित अनुमान 98,000 करोड़ रुपये है, साल भर नौकरियों की आपूर्ति की वर्तमान गति को बनाए रखने के लिए अतिरिक्त राशि की आवश्यकता हो सकती है।

पिछले वित्त वर्ष में योजना के लिए 1.1 लाख करोड़ रुपये के आवंटन की तुलना में चालू वित्त वर्ष में बजटीय परिव्यय (बीई/BE) 73,000 करोड़ रुपये था। हालांकि, इस योजना के लिए अतिरिक्त 25,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे जब संसद में व्यय पर पूरक मांग रखी गई थी। साल 2022-23 के बजट में भी इस योजना के लिए 73,000 करोड़ रुपये का आवंटन रखा गया है।

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डिस्क्लेमर आर्टिकल मीडिया एवं एजेंसी रिपोर्ट्स पर आधारित है। इसमें शीर्षक-उप शीर्षक और संबंधित अतिरिक्त जानकारी जोड़ी गई हैं। इसमें प्रकाशित तथ्यों की जिम्मेदारी राज एक्सप्रेस की नहीं होगी।

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